सूडान के कवि अल-सादिक अल-राद्दी की एक कविता...
स्तब्ध : अल-सादिक अल-राद्दी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जैसे वह आ पहुंची हो
तुम्हारे दरवाजे पर
ऐसे धड़कता है तुम्हारा दिल.
या जैसे उसके आने की उम्मीद में
तुम्हारी खिड़की पर जमा होने लगे हों
दोपहर के सारे पंछी.
धैर्य का एक युग.
पूरा एक जंगल फड़फड़ाहट का.
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धैर्य का एक युग ।
ReplyDeleteपूरा एक जंगल फड़फड़ाहट का ।
........बहुत सुंदर भाव भरी कविता ! सुंदर अनुवाद !
धैर्य की अनूठी व्याख्या.
ReplyDeleteधीरज को लिखते हुए कवि कितने ही भावों की व्याख्या कर गए!
ReplyDeleteसुन्दर!
जैसे उनके आने की उम्मीद में........वही बता सकता है जो उनके आने का इंतजार किया हो......शानदार कविता....खुबसूरत अनुवाद.......!!
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