Wednesday, March 21, 2012

आन्द्रास गेरेविच : टिरीसियस का कुबूलनामा

समलैंगिकता जैसे निषिद्ध विषय को अपनी कविता की विषय वस्तु बनाने वाले आन्द्रास गेरेविच की दो कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता - 'टिरीसियस का कुबूलनामा'.  टिरीसियस एक अंधे पैगम्बर थे जो एक श्राप की वजह से सात साल तक स्त्री की काया में रहे.   

 
टिरीसियस का कुबूलनामा : आन्द्रास गेरेविच 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

"कभी-कभी मैं जागता हूँ किसी सपने से 
और मुझे अंदाजा भी नहीं होता कि मैं कौन हूँ 
जवान या बूढ़ा, लड़की या लड़का. 

यह जानने के लिए मुझे 
छूना पड़ता है खुद को : इकलौता सबूत होती है 
सीले बिस्तर पर पसीने से तर मेरी देह." 

टिरीसियस मेरे सामने बैठा था. वह घुमाने निकला था 
अपने कुत्ते को, जबकि मैं दौड़ लगा रहा था 
और अब एक बेंच पर पसरे बैठे थे हम. 

"दिन या रात का फर्क तो काफी पहले ही  
ख़त्म हो चुका था मेरे लिए. बंद हो गई थी 
समय का ध्यान रखने वाली वह अंदरूनी घड़ी. 

सालों हो गए मुझे वर्तमान में रहना छोड़े हुए, 
सिर्फ उपदेशों और मिथकों में रहता आया हूँ मैं; 
और अब तो भटक जाता हूँ रास्ता भी अपना."    

उसने एक सिगरेट सुलगाई और कान के पीछे 
खुजलाया अपने कुत्ते को. "आन्द्रास, यदि मैं बात कर पाता 
इस बारे में, इस एक बार ही सही तो शायद... 

अपने सपनों में मैं हमेशा होता हूँ एक स्त्री 
मस्त और मोहक, और एकदम पहुँच से परे, 
पुरुषों की चहेती और प्रशंसित उनके द्वारा. 

अपने वक्षों से मैं खेलता हूँ अपने सपनों में, 
नाजुक और मुलायम होती है मेरी त्वचा, 
हलकी कंपकंपी रहती है पूरे सपने के दौरान." 

अपनी सफ़ेद छड़ी से पैरों को खुजलाया उसने, 
उसके हाथों और चेहरे पर से जगह-जगह उतर रही थी चमड़ी    
कुत्ते को एक साही मिल गई थी खेलने के लिए. 

"लगता है बहुत थोड़े समय का था सबसे बेहतरीन दौर 
मेरी ज़िंदगी का, सिर्फ कुछ मिनटों का जैसे 
जब पुरुषों के अन्दर चाह थी मेरी." 

उसने एक गहरी सांस ली, थूका और दूर देखने लगा. 
"यदि तुम्हें पुरुष होना पसंद हो तो ज़रा सावधान रहना, 
किसी भी समय तुम बदल सकते हो एक स्त्री में. 

बहुत महीन है इन दोनों के बीच की रेखा.     
शायद यदि मैं उम्मीद से हो जाऊं, 
तो बना रह पाऊँ एक स्त्री, एक माँ." 
                    :: :: :: 

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