Thursday, March 15, 2012

महमूद दरवेश : जैसे तुम कोई और हो


महान फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की लम्बी कविता 'निर्वासन' से एक अंश...                                                                          












मंगलवार, एक चमकीला दिन : महमूद दरवेश 
 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मंगलवार, एक चमकीला दिन. 
मैं शाहबलूत के पेड़ों से ढंकी,
एक गली से गुजरता हूँ. बहुत 
आहिस्ता-आहिस्ता चलता हूँ मैं, जैसे 
किसी कविता से तय हो मुलाक़ात मेरी. 
बेखयाली में देखता हूँ अपनी घड़ी.
सुदूर बादलों के पलटता हूँ पन्ने, जिसमें आसमान दर्ज करता है ऊंचे विचारों को. 
मोड़ देता हूँ अपने दिल के मामले 
अखरोट के पेड़ों की तरफ : खाली जगहें, बिना 
बिजली के जैसे समुन्दर किनारे एक छोटी सी झोपड़ी. 
तेज, धीमे, तेज चलता हूँ.
निहारता हूँ दोनों तरफ लगे साइनबोर्डों को...
गौर नहीं करता शब्दों पर. एक धुन गुनगुनाने लगता हूँ,
धीरे-धीरे, जैसे गुनगुनाते हैं बेरोजगार लोग : किसी बछड़े 
की तरह भागती है नदी अपनी नियति की तरफ, समुन्दर की तरफ. 
नदी के कन्धों से परिंदे झपट लेते हैं दाने.
और मैं बुदबुदाता हूँ, बुदबुदाता हूँ चुपके से : कल को आज ही जी लो !
चाहे जितने दिन ज़िंदा रहो तुम, कल तक कभी नहीं पहुँच पाओगे.
कल की कोई जमीन नहीं होती. सपना देखो धीरे-धीरे,
और चाहे जितना सपना देख लो, समझ जाओगे 
कि परवाने तुम्हें रोशनी देने के लिए नहीं जला करते. 

बहुत आहिस्ता-आहिस्ता चलता हूँ मैं, अपने आस-पास देखता हुआ.
शायद कोई समरूपता देख पाऊँ अपने विशेषणों 
और इस जगह के विलो के पेड़ों में. 
मगर मैं ऎसी कोई चीज नहीं देख पाता जो मेरी तरफ इशारा कर रही हो. 

(अगर कनारी चिड़िया तुम्हें गीत नहीं सुनाती, मेरे दोस्त,
जान लो कि तुम अपने खुद के जेलर हो,
अगर कनारी चिड़िया गीत नहीं गाती.)

कोई जमीन गमले जितनी संकरी नहीं होती, 
तुम्हारी जमीन की तरह. कोई जमीन किताब जितनी 
विस्तृत नहीं होती, जैसे कि तुम्हारी अपनी जमीन. और तुम्हारे सामने पसरा 
तुम्हारा निर्वासन है एक ऎसी दुनिया में जहां किसी परछाईं की 
कोई पहचान, कोई गुरुता नहीं होती. 

तुम ऐसे चलते हो जैसे तुम कोई और हो. 
                    :: :: :: 

9 comments:

  1. अगर कनारी चिड़िया गीत नहीं गाती ..

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  2. चाहे जीतने दिन जिंदा रहो तुम,कल तक कभी नहीं पहुँच पाओगे ,
    कल की कोई जमीन नहीं होती ,सपना देखो धीरे-धीरे ,
    और चाहे जितना सपना देख लो ,समझ जाओगे
    कि परवाने तुम्हें रोशनी देने के लिए नहीं जला कराते !

    खुद से बहस करती हुई सशक्त कविता ! सहज अनुवाद के लिए बधाई !

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  3. "तुम ऐसे चलते हो कि जैसे तुम कोई और हो", 'अगर कनारी चिड़िया गीत नहीं गाती'का स्वाभाविक परिणाम लगती है, यह पंक्ति.

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  4. वाह........
    बहुत सुन्दर प्रभावी अनुवाद...
    शुक्रिया.

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