Friday, March 30, 2012

महमूद दरवेश : इंतज़ार करते वक़्त

महमूद दरवेश की एक और कविता...   

 
इंतज़ार करते वक़्त : महमूद दरवेश 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

इंतज़ार करते वक़्त मुझे जूनून सा हो जाता है तमाम संभावनाओं पर 
गौर करने का: क्या पता वह ट्रेन में ही भूल गई हो 
अपना छोटा सा सूटकेस, और गुम हो गया हो मेरा पता 
और उसका मोबाइल फोन भी, उसकी इच्छा न रह गई हो 
और कहा हो उसने: इस बूंदा-बांदी में मैं क्यों भीगूँ उसके लिए / 
या शायद किसी जरूरी काम में व्यस्त हो गई हो वह, या निकल गई हो 
दक्खिन की तरफ सूरज से भेंट करने के लिए, और फोन किया हो मुझे 
और मुझसे बात न हो पाई हो सुबह-सुबह, क्योंकि मैं तो चला गया था 
गार्जीनिया के कुछ फूल और वाइन की दो बोतलें खरीदने के लिए
अपनी शाम के वास्ते  / 
या फिर शायद कोई झगड़ा था उसका अपने पूर्व-पति से 
कुछ यादों को लेकर, और कसम खा ली हो उसने किसी मर्द से न मिलने की 
जिससे डर हो उसे कुछ नई यादों के पैदा होने का / 
या दुर्घटनाग्रस्त हो गई वह एक टैक्सी में मुझसे मिलने आते समय 
जिसने बुझा दिए हों उसकी आकाश गंगा के कुछ सितारे 
और अब भी उसका इलाज चल रहा हो शांतिकर दवाओं और नींद से / 
या क्या पता बाहर निकलने के पहले उसने आईना देखा हो खुद से ही 
और महसूस किया हो दो नाशपातियों को लहरें पैदा करती हुईं 
अपनी रेशमी पोशाक में, फिर आह भरी हो और हिचकिचाई हो: 
क्या मेरे अलावा कोई और मेरे स्त्रीत्व का हकदार हो सकता है / 
या शायद संयोगवश ही वह टकरा गई हो एक पुराने प्यार से 
जिससे उबर न सकी हो अभी तक, और उसके साथ चली गई हो डिनर पर / 
या क्या पता मर ही गई हो वह, 
क्योंकि मौत को भी अचानक होता है प्यार, मेरी तरह 
और मेरी तरह मौत को भी पसंद नहीं इंतज़ार 
                    :: :: :: 

18 comments:

  1. एक और यादगार कविता

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  2. क्योकि मौत को भी अचानक होता है प्यार, मेरी तरह
    और मेरी तरह मौत को भी पसंद नही इन्तजार |

    बेहतरीन और यादगार ....

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  3. बहुत बढ़िया , मजबूत कविता !!आभार !

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  4. shandar kavita ke rubru karvane ke liye aabhar.

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  5. अच्‍छी कविता है मनोज भाई और अनुवाद भी शानदार। आपकी इस मेहनत को सलाम।

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  6. इन्तजार का जूनून,संभावनाओं का जूनून और उससे भी ज्यादा इस सुन्दर कविता का अनुवाद कर हम पाठकों तक पहुचानें का जूनून....इन जुनूनों को जूनून भरा सलाम....!

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  7. कविता शानदार है.
    बस "शान्तिकर दवाओं" थोड़ा खटक रहा है...

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  8. क्या बात ,क्या बात ,क्या बात ,मजा आ गया मनोज भाई

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  9. क्या बात .क्या बात ,क्या बात ,मजा आ गया मनोज भाई

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  10. बहुत अच्छी कविता." शांतिकर दवाओं" की जगह "अवसाद-निरोधी दवाओं" करके देख लीजिए.अंतिम दो पंक्तियां तो जादुई हैं. बधाई.

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  11. किसी की याद् में अनेक दुश्चिंताओं में घिरकर यह ख्याल अपजता है कि मौत को अचानक प्यार हो जाता है और उसे इंतजार पसंद नहीं है.

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. मनोज भाई,
    बहुत ही जिंदा कविता है.मैं जब अपने गाँव जाता हूं तब कभी कभी मुर्गी के चूजे को हाथ में धर लेता हूं,क्योंकि ऐसा करने सेउँगलियों में धडकन,ऊष्मा थरकती है -ये कविता पढते वक्त भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ....शुक्रिया शब्दों के जरिये इस अनुभूति तक पहुँचाने के लिए-

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