महमूद दरवेश की एक और कविता...
इंतज़ार करते वक़्त : महमूद दरवेश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
इंतज़ार करते वक़्त मुझे जूनून सा हो जाता है तमाम संभावनाओं पर
गौर करने का: क्या पता वह ट्रेन में ही भूल गई हो
अपना छोटा सा सूटकेस, और गुम हो गया हो मेरा पता
और उसका मोबाइल फोन भी, उसकी इच्छा न रह गई हो
और कहा हो उसने: इस बूंदा-बांदी में मैं क्यों भीगूँ उसके लिए /
या शायद किसी जरूरी काम में व्यस्त हो गई हो वह, या निकल गई हो
दक्खिन की तरफ सूरज से भेंट करने के लिए, और फोन किया हो मुझे
और मुझसे बात न हो पाई हो सुबह-सुबह, क्योंकि मैं तो चला गया था
गार्जीनिया के कुछ फूल और वाइन की दो बोतलें खरीदने के लिए
अपनी शाम के वास्ते /
या फिर शायद कोई झगड़ा था उसका अपने पूर्व-पति से
कुछ यादों को लेकर, और कसम खा ली हो उसने किसी मर्द से न मिलने की
जिससे डर हो उसे कुछ नई यादों के पैदा होने का /
या दुर्घटनाग्रस्त हो गई वह एक टैक्सी में मुझसे मिलने आते समय
जिसने बुझा दिए हों उसकी आकाश गंगा के कुछ सितारे
और अब भी उसका इलाज चल रहा हो शांतिकर दवाओं और नींद से /
या क्या पता बाहर निकलने के पहले उसने आईना देखा हो खुद से ही
और महसूस किया हो दो नाशपातियों को लहरें पैदा करती हुईं
अपनी रेशमी पोशाक में, फिर आह भरी हो और हिचकिचाई हो:
क्या मेरे अलावा कोई और मेरे स्त्रीत्व का हकदार हो सकता है /
या शायद संयोगवश ही वह टकरा गई हो एक पुराने प्यार से
जिससे उबर न सकी हो अभी तक, और उसके साथ चली गई हो डिनर पर /
या क्या पता मर ही गई हो वह,
क्योंकि मौत को भी अचानक होता है प्यार, मेरी तरह
और मेरी तरह मौत को भी पसंद नहीं इंतज़ार
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एक और यादगार कविता
ReplyDeleteक्योकि मौत को भी अचानक होता है प्यार, मेरी तरह
ReplyDeleteऔर मेरी तरह मौत को भी पसंद नही इन्तजार |
बेहतरीन और यादगार ....
nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , मजबूत कविता !!आभार !
ReplyDeletekya baat!!!
ReplyDeleteshandar kavita ke rubru karvane ke liye aabhar.
ReplyDeleteअच्छी कविता है मनोज भाई और अनुवाद भी शानदार। आपकी इस मेहनत को सलाम।
ReplyDeleteइन्तजार का जूनून,संभावनाओं का जूनून और उससे भी ज्यादा इस सुन्दर कविता का अनुवाद कर हम पाठकों तक पहुचानें का जूनून....इन जुनूनों को जूनून भरा सलाम....!
ReplyDeleteकविता शानदार है.
ReplyDeleteबस "शान्तिकर दवाओं" थोड़ा खटक रहा है...
क्या बात ,क्या बात ,क्या बात ,मजा आ गया मनोज भाई
ReplyDeleteक्या बात .क्या बात ,क्या बात ,मजा आ गया मनोज भाई
ReplyDeleteखूब, बहुत खूब।
ReplyDeleteखूब बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता." शांतिकर दवाओं" की जगह "अवसाद-निरोधी दवाओं" करके देख लीजिए.अंतिम दो पंक्तियां तो जादुई हैं. बधाई.
ReplyDeleteकिसी की याद् में अनेक दुश्चिंताओं में घिरकर यह ख्याल अपजता है कि मौत को अचानक प्यार हो जाता है और उसे इंतजार पसंद नहीं है.
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ReplyDeleteमनोज भाई,
ReplyDeleteबहुत ही जिंदा कविता है.मैं जब अपने गाँव जाता हूं तब कभी कभी मुर्गी के चूजे को हाथ में धर लेता हूं,क्योंकि ऐसा करने सेउँगलियों में धडकन,ऊष्मा थरकती है -ये कविता पढते वक्त भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ....शुक्रिया शब्दों के जरिये इस अनुभूति तक पहुँचाने के लिए-
kamal ki kavita
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