Tuesday, March 20, 2012

पीट हाइन की कविताएँ

डेनमार्क के कवि पीट हाइन (१९०५ - १९९६) लेखक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक, गणितज्ञ, आविष्कारक और डिजाइनर भी थे. ग्रूक के नाम से जानी जाने वाली उनकी छोटी-छोटी कविताएँ अप्रैल १९४० में नाजी आधिपत्य के बाद एक अखबार में प्रकाशित होना शुरू हुईं थीं. प्रायः व्यंग्यात्मक प्रकृति की ये कविताएँ वे कुम्बल (कब्र का पत्थर) के छद्म नाम से लिखा करते थे.   










पीट हाइन के ग्रूक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तसल्ली 

निश्चित रूप से तकलीफदेह है 
एक दस्ताने का गुम होना, 
मगर उस तकलीफ का  
कोई मुकाबला ही नहीं 
कि एक दस्ताना खो जाने पर 
फेंक देना दूसरे को, 
और फिर 

मिल जाना पहले वाले का. 
:: :: :: 

अक्लमंदी का रास्ता 

अक्लमंदी का रास्ता? 
बहुत आसान है 
इसे समझाना: 
गलती 
और गलती 
फिर और गलती,  
मगर कम 
और कम 
फिर और कम. 
:: :: :: 

समानता 

कोई गाय घोड़े जैसी नहीं होती, 
और कोई घोड़ा नहीं होता गाय जैसा. 
बस यही एक समानता है 
जैसे-तैसे. 
:: :: :: 

7 comments:

  1. I know now that padhte padhte will have surprises each day to unravel!

    Beautiful translation!

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  2. वाह..........
    कमाल की रचनाएँ....
    हर बार गलती...मगर पहले से कम...यही है अक्लमंदी..
    बहुत बढ़िया...

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  3. बहुत कसी हुई व्यंग कवितायें और वैसा ही अनुवाद !बहुत बधाई मनोज जी !

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  4. Gruks - simple,logical and enjoyable.

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  5. itni khoobsurti se kase hain tanj ki chot bhi na lage aur dard bhi ubhar aaye!!Gr8 writing.
    is blog par niymit vichran karna zaruri sa ho gaya hai.

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  6. Dhanyawaad, Manoj.

    Tumne peter aur Ashesh ke saath
    beete ek jaise 'mazaak' ko
    tatkaal pakad liya.

    Ham jitne khule aasmaan ke neeche rahte hain
    utne hi haadse aur karishmen
    hamaare saajha ho jaate hain.

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  7. Dhanyawaad Manoj!

    Tum ne wah lamha pakad liya
    jo pahli kavita jaisa hi
    Ashesh ke saath hokar guzra.

    Khule aasmaaono ke neeche
    thikaane banaane waalon ke saath
    aise 'haadse'bahut khoobsoorti se
    saajha ho jaate hain.

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