अंजेल गोंजालेज का परिचय और उनकी एक कविता आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक और कविता...
जो भी तुम चाहो : अंजेल गोंजालेज
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब पैसे हों तुम्हारे पास, एक अंगूठी खरीद देना मेरे लिए,
जब कुछ न हो, एक कोना दे देना अपने मुंह का,
जब सूझ न रहा हो कुछ, आना मेरे साथ
-- मगर यह मत कहना बाद में कि तुम्हें पता नहीं था क्या कर रही थी तुम.
सुबह-सुबह तुम बटोरती हो जलाऊ लकड़ियों के गट्ठे
और तुम्हारे हाथों में वे बदल जाती हैं फूलों में.
पंखुड़ियों को थाम कर मैं उठाता हूँ तुम्हें,
अगर तुम चली गई तो मैं खुशबू ले लूंगा तुम्हारी.
मगर मैं पहले ही बता चुका हूँ तुम्हें:
अगर जाना ही है तुम्हें तो यह रहा दरवाजा:
इसका नाम है अंजेल और यह खुलता है आंसुओं की तरफ.
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सुन्दर!
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत..
उफ़्फ़....
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