पीट हाईन के कुछ और ग्रुक्स...
पीट हाईन के ग्रूक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
आत्मकेंद्रित
हद दर्जे के
आत्मकेंद्रित होते हैं लोग
अपनी ही हांके जाएंगे वे
जब मैं बता रहा होता हूँ अपने बारे में.
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जैसा होता है प्यार
अनानास की तरह
होता है प्यार,
मीठा और
अपरिभाष्य.
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बराबरी
वह, जो
इरादा बांधता है बराबरी का
हमेशा आता है
दूसरे स्थान पर.
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ज़िंदगी का विरोधाभास
दार्शनिक ग्रूक
थोड़ा समझ से परे लगेगा यह
मगर कभी-कभी लगता है मुझे
कि दो ताला जड़े संदूकों जैसी होती है ज़िंदगी
और हर एक में बंद रहती है दूसरे की चाभी.
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apnee hee haanke jaayenge we ..!umdaa anuwaad .
ReplyDeleteअच्छे ग्रूक्स !!
ReplyDelete"दो ताला जड़े संदूकों जैसी होती है जिंदगी
और हरेक में बंद रहती है दूसरे की चाभी !
आभार मनोज जी !
वाह............
ReplyDeleteबेहतरीन...........
खास तौर पर जिंदगी का विरोधाभास...
शुक्रिया.
बहुत बढ़िया भाई जी |
ReplyDeleteआभार ||
iraada baandhta hai jo barabari ka aata hai humesha doosre sthaan par...aise anubhav-janit vichaaron ke liye bahut saadhna hoga jeevan..umda..
ReplyDeleteकमाल की कविताएं हैं। छोटी-छोटी बातों को पूरी सहजता और संजीदगी से शब्दों में पिरोती हुई। बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDelete"जैसा होता है प्यार" और " जिंदगी का विरोधाभास" अद्भुत कविताएं हैं. मुश्किल बातों को इतनी आसानी से कह पाना हरेक कवि के वश की बात नहीं.
ReplyDeleteThode se sabd samuh badi2 sachaiyan ukerten hai jindgi ke-Waw...!
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