अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक कविता...
क्या मोहब्बत कहीं खो गई : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल)
क्या मोहब्बत के लिए
कभी तुम्हारा लिबास सरनिगूँ नहीं हुआ
या तुम्हारा दिल
आरास्ता बाल्कनियों से
फ़ाख्ताओं के साथ हवा में बुलंद नहीं किया गया
मैनें रक्स को फासले
और रक्कासा को करीब से देखा
वह थक कर मेरे ज़ानू पर सो सकती थी
मगर वह अपने दिल से तेज नहीं नाच सकी
क्या तुम अपने दिल से तेज नाच सकती हो
मैनें देर तक
अपने साथ की नशिस्त पर तुम्हें महसूस किया
क्या मेरा दिल एक खाली नशिस्त है
जिसका टिकट मुझसे खो गया
क्या मोहब्बत कहीं खो गई
हमने अपने कमरे में
मस्नूई आतिशदान बनाया
और एक-दूसरे से
अजनबी की तरह मिले
फूलों की नुमाइश के दिन
तुम अलविदाई बोसा दिए बगैर
चली गईं
बाहर बारिश हो रही थी
एक छतरी मेरे दिल में बंद रह गई
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सरनिगूँ : अधोमुख, उतरना
आरास्ता : सुसज्जित
रक्स : नाच
रक्कासा : नाचने वाली
नशिस्त : सीट
मस्नूई : बनावटी, कृत्रिम
sadaa ki tarah laajawab.shukriya.
ReplyDeletebehad umda!
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