जिबिग्न्यु हर्बर्ट की एक और कविता...
मेज के साथ सावधान : जिबिग्न्यु हर्बर्ट
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेज पर आपको चुपचाप बैठना चाहिए और खयाली पुलाव नहीं पकाने चाहिए. चलिए याद करते हैं कि अपने आप को शांत गोलाकार तरंगों में बदलने के लिए तूफानी समुद्री लहरों को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी. असावधानी का एक पल सारे किए-धरे पर पानी फेर देता. मेज के पायों को रगड़ना भी वर्जित है क्योंकि वे बेहद संवेदनशील होते हैं. मेज पर सबकुछ शांतिपूर्वक तथ्यात्मक ढंग से निपटाया जाना चाहिए. चीजों पर पूर्ण रूप से विचार किए बिना आप यहाँ नहीं बैठ सकते. खयाली पुलाव पकाने के लिए हमें लकड़ी की बनी अन्य चीजें प्रदान की गई हैं, जैसे : जंगल, पलंग.
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Manoj Patel, Blogger & Translator, Akbarpur - Ambedkarnagar (U.P.)
It is so soothing to read this poem!
ReplyDeletepadhte padhte is really a delight to visit to:)
Regards,
बहुत खूब.. ख्याली पुलाव पिकनिक में या नींद में.. काम की बातें मेज पर...बहुत सुंदर!
ReplyDeleteक्या बात है ! "ख्याली पुलाव पकाना" है तो जंगल में भ्रमण करने निकल जाइए, और इतना भी नहीं पर सकते तो पलंग पर पसर जाइए. मेज़ पर बैठना है तो तरीक़े से काम कीजिए, व्यवस्थित और तर्कपूर्ण ढंग से. कवियों के लिए बड़ी नसीहत छिपी है इन पंक्तियों में.
ReplyDeleteदिल खुश हो गया ...
ReplyDeleteखयाली पुलाव पकाने के लिए..पलंग, जंगल।..वाह!
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