Thursday, December 29, 2011

दून्या मिखाइल : नया साल


दून्या मिखाइल की एक और कविता...


नया साल : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल)


कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर.
कितना निराशाजनक है यह...
कि तुम नहीं, नया साल आया है. 


मुझे नहीं पता कि कैसे तुम्हारी गैरहाजिरी जोडूँ अपनी ज़िंदगी में.
नहीं मालूम कि कैसे इसमें से घटा दूं खुद को.
नहीं मालूम कि कैसे भाग दूं इसे 
प्रयोगशाला की शीशियों के बीच.


वक़्त ठहर गया बारह बजे 
और इसने चकरा दिया घड़ीसाज को.
कोई गड़बड़ी नहीं थी घड़ी में.
बस बात इतनी सी थी कि सूइयां 
भूल गईं दुनिया को, हमआगोश होकर. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Blogger and Translator 

5 comments:

  1. नव वर्ष की शुभकामनाएँ मनोज ..
    अनुवाद बहुत सुन्दर है .

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  2. गज़ब की कविताएँ भाई...इससे बेहतर क्या होगा नए साल पर...

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  3. Nice Poem, This is the Best Hindi Blog,Keap it up.
    Happy New Year!!
    N B

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  4. बेहतरीन | हमेशा की तरह

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