Thursday, March 8, 2012

अजब-गजब


सभी मित्रों को होली की शुभकामनाएं. कभी-कभी कुछ मजेदार, कुछ अजीबोगरीब बातें पढ़ने को मिल जाती हैं. आज उन्हीं में से कुछ...  

  

चीन के प्रसिद्द कवि ली पो की मृत्यु कैसे हुई थी? वे एक नदी में नौका विहार कर रहे थे और उन्होंने पानी पर पड़ रहे चंद्रमा के प्रतिबिम्ब को चूमना चाहा. इस प्रयास में वे नाव से गिरकर डूब गए. 

आस्कर वाइल्ड को अलेक्जेंडर पोप की कविताएँ पसंद नहीं थीं. एक मौके पर उन्होंने टिप्पणी की, "कविता को नापसंद करने के दो तरीके हैं. एक तो यह कि आप कविता को नापसंद करिए, और दूसरा यह कि अलेक्जेंडर पोप की कविता पढ़ लीजिए." 

राबर्ट फ्रास्ट के आलोचकों की भी कमी नहीं थी. एक बार कवि जेम्स डिकी ने घोषणा की कि ,"यदि मेरी कोई रचना राबर्ट फ्रास्ट से प्रभावित मानी गई तो मैं उसे उठाऊंगा और टुकड़े-टुकड़े कर टायलेट में बहा दूंगा, यह मनाते हुए कि नाली न जाम हो जाए." 

नोबेल विजेता कवि नाटककार डेरेक वाल्काट ने एक बार सानेट की एक लम्बी सीरीज लिखी. वजह? उहोनें बाद में बताया कि 'कैरेबियन वायस' नामक कार्यक्रम के लिए यह कविताएँ बीबीसी को दी जानी थीं, जहां प्रति मिनट के हिसाब से पैसे मिलने थे.    

जार्ज बर्नाड शा ने एक बार एक पुरानी किताबों की दूकान पर अपनी एक किताब देखी जिसे उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ किसी को भेंट किया था. उसपर उन्होंने लिखा था, "विद एस्टीम टू ..... -- जार्ज बर्नाड शा." उन्होंने वह किताब दुबारा खरीदी और उसे पुनः उन्हीं सज्जन को यह लिखते हुए भेंट कर दिया -- "विद रिन्यूड एस्टीम..."
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9 comments:

  1. ली पो और बर्नार्ड शा वाली बातें ज्यादा मजेदार हैं... वैसे तो सब हैं...
    बढिया...

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  2. वाह! ऐसा भी होता है...

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  3. होली की ढेर सारी बधाइयों मनोज जी। काफी अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढकर। चांद से प्रेम से लेकर अपनी कविता के दूसरे से प्रभावित होने तक की सारी बाते बहुत मनोरंजक, गुदगुदाने वाली और सोचने के लिए प्रेरित करने वाली हैं। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

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  4. I love stories about Bernard Shaw :)

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  5. मैंने दरियागंज के पुस्तक बाज़ार से एक आर्ट गैलरी का पुराना कैटलोग खरीदा था... घर आ के देखा कि हुसैन और उनके सुपुत्र द्वारा हस्ताक्षरित ये पुस्तिका अशोक चक्रधर को 'सप्रेम भेंट' दी गयी थी... ये बात १९९२ -९३ की है... पुस्तिका अब भी मेरे पास है...

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  6. मैंने दरियागंज के पुस्तक बाज़ार से एक आर्ट गैलरी का पुराना कैटलोग खरीदा था... घर आ के देखा कि हुसैन और उनके सुपुत्र द्वारा हस्ताक्षरित ये पुस्तिका अशोक चक्रधर को 'सप्रेम भेंट' दी गयी थी... ये बात १९९२ -९३ की है... पुस्तिका अब भी मेरे पास है...

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  7. वाह मनोज जी ..कभी कभी ऐसी बातें जानकर बहुत अच्छा लगता है.

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