Sunday, March 11, 2012

धैर्य का एक युग

सूडान के कवि अल-सादिक अल-राद्दी की एक कविता...  

 
स्तब्ध : अल-सादिक अल-राद्दी 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

जैसे वह आ पहुंची हो 
तुम्हारे दरवाजे पर 
ऐसे धड़कता है तुम्हारा दिल. 

या जैसे उसके आने की उम्मीद में 
तुम्हारी खिड़की पर जमा होने लगे हों 
दोपहर के सारे पंछी. 

धैर्य का एक युग. 
पूरा एक जंगल फड़फड़ाहट का. 
               :: :: :: 

4 comments:

  1. धैर्य का एक युग ।
    पूरा एक जंगल फड़फड़ाहट का ।

    ........बहुत सुंदर भाव भरी कविता ! सुंदर अनुवाद !

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  2. धैर्य की अनूठी व्याख्या.

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  3. धीरज को लिखते हुए कवि कितने ही भावों की व्याख्या कर गए!
    सुन्दर!

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  4. जैसे उनके आने की उम्मीद में........वही बता सकता है जो उनके आने का इंतजार किया हो......शानदार कविता....खुबसूरत अनुवाद.......!!

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