Sunday, April 1, 2012

रोजारियो कास्तेल्यानो : शतरंज

आज मेक्सिको की कवियत्री रोजारियो कास्तेल्यानो की एक कविता...   

 
शतरंज : रोजारियो कास्तेल्यानो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

क्योंकि हम दोस्त थे और कुछ समय से प्रेम भी था एक-दूसरे से 
इसलिए उन तमाम बंधनों के अतिरिक्त, जो जोड़ते थे हमें 
एक और बंधन से जुड़ने के लिए ही 
हमने तय किया दिमागी खेलों को खेलने का. 

हमने एक बिसात बिछाई अपने बीच; 
जो बराबर-बराबर बंटी थी 
मोहरों, मान और संभावित चालों में. 
हमने कायदे-क़ानून सीखे उसके, वचन दिया 
उनके पालन का 
और शुरू हो गया मैच. 

और सदियों से हम बैठें हैं यहाँ, 
निर्ममता से सोचते हुए,  
कि कैसे दी जाए वह आखिरी चोट 
जो मिटा दे दूसरे को हमेशा के लिए. 
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. निर्ममता और स्पष्टता से हमारे निर्मम जीवन व्यवहार को रेखांकित करती कविता...!
    आभार!

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  2. हमारे पारस्परिक संबंधों पर सटीक टिप्पणी.

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  3. कमाल की कविता! शतरंज के खिलाड़ी हैं और यह वाला गेम कभी खेला नहीं!!

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  4. जीवन की विद्रूपता यही है।

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  5. सामयिक कविता .....सुंदर........आभार....!!

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  6. अपनी सोच को जितना चाहो निर्मम बना डालो, हम दूसरे को मिटा नही पाएंगे. क्यों कि हम हमेशा दूसरे की तलाश मे रहते हैं. हमे हर वक़्त *दूसरा* चाहिए ...... चाहे वो जितना भी वाहियात और असहय क्यों न हो !!

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