Saturday, March 17, 2012

दून्या मिखाइल : आईना

दुन्या मिखाइल की डायरी से कुछ कहानियां आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है एक और 'कहानी'   

 
आईना : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वे सारी तस्वीरें जिन्हें हम जी चुके होते हैं 
हमारे पीछे रहती हैं आईने में, 
शीशे के दूसरी तरफ. 
शादियाँ, जंग, सेक्स, 
गुनाह, हँसी, झुर्रियां. 
हर दृश्य दर्ज करने के लिए होता है आईना. 
उसे नहीं पता कि बस एक चिटकन ही काफी होती है 
चूर-चूर कर देने के लिए हर चीज. 
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. "उसे नहीं पता कि बस एक चिटकन ही काफ़ी होती है
    चूर-चूर कर देने के लिए हर चीज़." आइनों की फ़ितरत ही होती है यह.

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  2. बेमिसाल....
    गहरी बात कहती रचना..

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  3. aap sachmuch najarbaj hain manoj, is kavita ke sath jo chitra chashpa kiya hai, vah khud hi ek mukammal kavita hai. badhai.

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  4. बढ़िया प्रस्तुति ||

    बधाई ||

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