Tuesday, March 27, 2012

एंतोनियो पोर्चिया के साथ एक मुलाक़ात


एंतोनियो पोर्चिया के साथ इनेस मालिनोव की एक मुलाक़ात...   


एंतोनियो पोर्चिया के साथ एक मुलाक़ात : इनेस मालिनोव 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

"मैं कविता की तलाश नहीं करता; वह मेरे पास आती है." 
                                                        -- एंतोनियो पोर्चिया 

ओलीवस स्थित एंतोनियो पोर्चिया के छोटे से घर के बगीचे में एक रहस्यमयी काली बिल्ली हमें देख रही है. दिन के ग्यारह बजे हैं. चार साफ़-सुथरे कमरों में तमाम पेंटिंग्स लगी हैं. पोर्चिया बताते हैं, "मेरे कई दोस्त पेंटर हैं... यह उसी की फसल है." उनकी कोई पत्नी या बच्चे नहीं हैं. वे खुद भी किसी चीज के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं. वे अपनी किताब के बारे में बातें करते हैं. आप इसे आवाजें  क्यों कहते हैं? वे जवाब देते हैं, "बड़ा मुश्किल है कुछ कहना. हर चीज सुनी जाती है. लोग भी हर चीज को सुनते हैं." पोर्चिया इसी तरह आम तौर पर सूक्तिपूर्ण ढंग से ही कोई बात कहते हैं. उनके हाथ कांपा करते हैं. वे माफी मांगते हैं, "मैं नर्वस हो रहा हूँ. मैं हमेशा नर्वस रहता हूँ." हालांकि माफी तो दरअसल हमें मांगनी चाहिए, हम यानी एक पत्रकार और एक फोटोग्राफर जो एक ऎसी भरपूर और गहरी ज़िंदगी को दर्ज करने के लिए बेचैन हैं जो शायद ही कभी लोगों तक पहुंची हो. यह कोई सनसनी नहीं, बल्कि एक राज है. कवि बताता है, "ज़िंदगी का राज? चीजें बदलती हैं, हम सभी बदल जाते हैं. कोई राज नही है. कौन जान सकता है इसे?" और "कोई कभी नहीं जान पाता, और बहुत कम जानना भी चाहता है जिससे कि बेचैनी की व्याख्या हो जाए." उनका चेहरा एक ऎसी रोशनी से चमक उठता है जिसने बहुत कुछ देखा है; वे हँसते हैं और एक किताब उठाकर पढ़ने लगते हैं. उन्हें अपने ख्यालों को पढ़ना पसंद है. वे शुरू करते हैं, "किसी समय, किसी अनंतता में, क्या ऐसा हो सकता है कि चीजें, चीजें ही रही हों न कि चीजों की स्मृति?" खुद को बिलकुल सहज-सरल तरीके से अभिव्यक्त करने के लिए वे किसी अभिनेता की तरह पढ़ते हैं, मगर फिर भी हमेशा, तब भी जब वे एक क्षण के लिए किताब पर गौर करने लगते हैं, ऐसा ही लगता है कि मानो वे अपने शब्दों को कहीं तलाशते रहते हों, शायद अपनी स्मृति में. वे अपने विचार को रटने के बाद बोलते हैं. उनके लिए पढ़ने का यही मतलब है. "मुझे नहीं लगता कि मैं अतियथार्थवादी हूँ. मुझे नहीं पता कि मैं खुद को कैसे परिभाषित करूँ क्योंकि मैं, कभी खुद मैं होता ही नहीं. हर कोई चीजों की एक अनंतता होता है. जहां तक निश्चितता की बात है... किसके पास है यह?"  वे अस्तित्व, समय, यथार्थता पर सवाल खड़े करते हैं. दस्तखतों से भरे एक बड़े से कागज़ पर लिखा हुआ है : "दार्शनिक एंतोनियो पोर्चिया के लिए." शायद यही कुंजी है: पोर्चिया अपने कवि जितने ही गूढ़ दार्शनिक भी हैं. अध्ययन और चिंतन उनके विचारों में झलकता है. "मैनें बहुत कम और बहुत बेतरतीबी से पढ़ा है." वे जल्दी से बताते हैं. उनमें बहुत शर्मीलापन और आत्मविश्वास है. वे कहते हैं, "मेरी किताब आवाजें लगभग मेरी आत्मकथा है. और वही लगभग सभी लोगों की है." और फिर वे अपनी ज़िंदगी के बारे में बताने लगते हैं. 

एंतोनियो पोर्चिया का जन्म १८८५ में इटली में हुआ था. वे पचास साल से अर्जेंटीना में रह रहे हैं. अब तक आपने अपनी जीविका कैसे कमाई? "मैं बहुत छोटा था जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई. वे पचास साल के थे. इसीलिए मैनें कहा: 'मेरे पिता जब गए, मेरे बचपन को आधी सदी का तोहफा दे गए'. मैं कई भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और मैनें बहुत काम किया. मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं. मगर उसकी अच्छाई ने मुझे बहुत नुकसान पहुंचाया है. उसकी वजह से मैनें बहुत तकलीफें सही हैं. इसीलिए मैनें लिखा: 'मैं कोई चीज दुबारा नहीं चाहूंगा. माँ भी नहीं.' मैनें हर तरह के काम किए... और फिर अपने भाई के छापाखाने पर भी काम किया."  जब पोर्चिया बोलते हैं तो वह मर्मस्पर्शी होता है. वे सबकुछ जानने वाले और सबसे मासूम एक साथ लगते हैं. प्यार के बारे में उनका कहना है: "हाँ, मुझे पता नहीं. मुझे दो बार हुआ. ऎसी चीजें होती हैं, वे किसी एक के भीतर समाई हुई आती हैं. चूंकि वे तार्किक या सुव्यवस्थित नहीं होतीं इसलिए वे असंभव के भीतर आती हैं. असंभव अपने आपको अकेला कर लेता है, कोई उसे करता नहीं... मगर यही एक चीज है जिसका कोई महत्त्व है."  वे याद करते हैं कि यह उदासी और दूसरे का अकेलापन था जो उन्हें आकर्षित करता था. वे दोनों ऎसी स्त्रियाँ थीं जिनसे वे शुरूआत में प्यार नहीं कर पाए.. --फिर खासतौर पर पहली वाली को-- वे जीवनभर प्यार करते रहे. मगर उन्होंने कभी अकेला नहीं महसूस किया. "मेरे ढेर सारे दोस्त हैं. लोगों के साथ घुलना-मिलना मेरे लिए हमेशा बहुत आसान रहा है. कभी-कभी मैं तब अकेला महसूस करता हूँ जब कोई मेरे साथ होता है. जो कोई नहीं होता." 

दोपहर के समय को वे सेब खाने का समय मानते हैं. वे एक प्लेट में दो सेब लेकर आते हैं जिसे उन्होंने खुद पकाया है. सेब बहुत स्वादिष्ट हैं. वे उनमें चीज लगाते हैं. उनके वाक्य छोटे और सारगर्भित होते हैं. वे फिर से बताते हैं: "मैनें बहुत थोड़ा और बहुत बेतरतीब ढंग से पढ़ा है. मुझे चीजों से सुझाव मिला करते थे. मगर वह हर किसी के लिए नहीं है." वे सच कह रहे हैं; भले ही यह जानते-बूझते न हो, मगर वे अलग हैं. एक तरह से उन्हें पता है कि वे मूल्यवान हैं क्योंकि उनके अनुभव सबके अनुभव हैं. अस्तित्व अनंतता को ही दर्ज करता है. वे एक कलाकार हैं, अमूर्त वास्तविकताओं और मानव ह्रदय के जटिल और संवेदनशील अन्वेषक. मुझे उनसे पूछना पड़ता है, "पोर्चिया, क्या आप ईश्वर में भरोसा करते हैं?" वे मुस्कराते हुए जवाब देते हैं, "मैं ईश्वर में भरोसा नहीं करता मगर मैं उन्हें प्यार करता हूँ." 

वे मुझे बिलकुल नई Voices की पांडुलिपि दिखाते हैं. बिलकुल साफ़-सुथरी हस्तलिपि में उन्होंने अपनी कविताओं, अपने विचारों को लिख रखा है. वे स्कूल के दिनों की, रोशनाई में डुबो कर लिखने वाली एक कलम से लिखते हैं. वे ध्यान दिलाते हैं, "आप मेरे बारे में इतना कुछ जानते हैं मगर मुझे समझते नहीं. जानना, समझना नहीं होता. हो सकता है हम सबकुछ जानते हों मगर समझते कुछ भी न हों."  "ज्यादातर हमारा स्वयं होने का डर ही हमें आईने तक ले जाता है." "क्योंकि वे उसका नाम जानते हैं जो मैं ढूंढ़ रहा हूँ, उन्हें लगता है कि वे जानते हैं कि मैं क्या ढूंढ़ रहा हूँ." "यह पल अभी, अनंतता बाद में. पल और अनंतता. केवल पल ही समय है, अनंतता समय नहीं है. अनंतता पल की स्मृति है." "जो आग से आग तक घूमता रहता है, ठण्ड से मर जाता है." 

एंतोनियो पोर्चिया मर्मस्पर्शी और अद्भुत हैं. सब के बारे में उदारतापूर्वक बात करते हुए वे अपनी सहज करुणा, अपनी बुद्धिमत्ता, अपने मानवीय पहलू को उद्घाटित करते रहते हैं. जैसा कि वे विदा करते हुए कहते हैं, "मैं उम्मीद करता हूँ कि कम से कम एक बेहतर पैराग्राफ के लिए मैं जरूर मदद कर पाया होऊंगा." गैस चूल्हा जलाकर मेट  तैयार करने के लिए केतली गर्माते हुए वे ओलीवस के अपने छोटे से मकान में अकेले रह जाते हैं. वे एक ऎसी आवाज़ हैं जो भावनाओं और ब्रह्माण्ड की विविधता से भरी हुई है. 
                                                            :: :: :: 

3 comments:

  1. सच है... सच्चे कवि के पास कविता को जाना ही होता है...
    ये कविताओं का जगत ही ऐसा है... प्यासे तक कुआं चल कर जाता है!
    इस सुन्दर मुलाकात की प्रस्तुति के लिए आभार!

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  2. अस्तित्व की अनंतता,अमूर्त वास्तविकता और मानव हृदयों की जटिलताओं के कुशल चितेरे से मर्मस्पर्शी मुलाकात का विवरण लेखक के संसार में प्रवेश करा देता है.

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  3. बहुत सुंदर. अंतिम अनुच्छेद तो अप्रतिम है.

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