Tuesday, April 3, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : शायरी मैनें ईजाद की

आज अफ़ज़ाल अहमद सैयद की वह मशहूर कविता... 'शायरी मैनें ईजाद की' 

 
शायरी मैनें ईजाद की : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया 
हुरूफ़ फोनिशियों ने 
शायरी मैनें ईजाद की 

कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया 
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई 
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की 
और मिल कर गाना सीखा 

रोटी की कतार में जब चीटियाँ भी आकर खड़ी हो गईं 
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया 

शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया 
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाए 
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की 
जहां जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया 

फासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए 
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया 
और जब शिकस्त ईजाद हुई 
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया 

मगर उस वक़्त तक शायरी मोहब्बत  को ईजाद कर चुकी थी  
मोहब्बत ने दिल ईजाद किया 
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनाईं 
और दूर-दराज के मक़ामात  तय किए 

ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया 
और सोए हुए दिल में चुभो कर भाग गया 

दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए 
नीलामी ईजाद हुई 
और 
ज़बर ने आखिरी बोली ईजाद की 

मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी 
और ज़बर का हाथ जला दिया 
                    :: :: :: 

मराकिशी / फोनिशी : क्रमशः मराकेश  शहर एवं फोनिश सभ्यता के निवासी 
हुरूफ़ : वर्णमाला 
फ़ाक़ा : उपवास  
महलसरा : हरम, जनानखाना  
मक़ामात : मंजिलें 
ख्वाजासरा : हरम का रखवाला, हीजड़ा  
ज़बर : ताकतवर 

5 comments:

  1. बड़ी मकबूल और ताकतवर कविता है ये ! कमाल है ,वाकई कमाल !
    बहुत बहुत आभार मनोज जी इस नायाब कविता से रू-ब-रू कराने के लिए !

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  2. क्या कहूँ..........................

    बेहद अजीबो गरीब मगर दिल में भीतर तक उतर गयी...

    अनु

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  3. वाह! वाकई बेहतरीन!

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  4. बहुत मक़बूल !..... एक अनुवाद पहले भी कहीं पढ़ा था शायद. वह भी अच्छा था.

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