अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
यह कोई ग़ैर मामूली बात नहीं : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
यह कोई ग़ैर मामूली बात नहीं
कि मेरी तलाशी ली गई
और मेरे दिल को छीन लिया गया
और न यह कि
मुझे बाहर निकालने के लिए
मेरे घर को आग लगा दी गई
और न यह कि
कुत्ते पकड़ने की कैंची मेरी कमर में फंसाकर
मुझे ट्रक में डाल दिया गया
और न यह कि
जलते हुए कोयले को
अपनी मुठ्ठी में छुपाकर मैंने पूछा
मेरे हाथ में क्या है
और तुम कोई जवाब न दे सकीं.
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किसी के लिए भी यह बता पाना शायद आसान नहीं होता कि बंद मुट्ठी में एक जलता हुआ कोयला भी हो सकता है ! वैसे सबसे बड़ी खूबी इस कविता की यह लगती है कि तमाम यंत्रणाओं को कवि "मामूली" ही मानता है. यंत्रणाओं की सघनता इससे बढ़ जाती है.
ReplyDeleteयंत्रणाओं को धुँए में उड़ाती कविता.....शानदार।
ReplyDeleteएक गैर मामूली यंत्रणाओं को झेलते हुए व्यक्ति की दारुण गाथा ! सहज अनुवाद !
ReplyDeleteएक ऐसी कविता जो मौन में परिभाषित होती है अल्फाज़ कम पड गये !!आभार !!
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