अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
एक नई ज़बान का सीखना : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
समुन्दर के क़रीब
एक इमारत में
जहां मेरे
और पड़ोस के कुत्ते के सिवा
कोई तनहा नहीं पहुंचता
मैं एक नई ज़बान सीख रहा हूँ
अपने आप से बातें करने के लिए
:: :: ::
जबान, जिसमें स्वयं से बात की जा सके... वो तो अलग ही होती है... हर एक को स्वयं सीखनी होती है...
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता!
aaj maine khud ko sapne mein samunadar ke kareeb imarat mein paya jahan main andhere mein kinare se ghar pahunchti hun aur sochti hun main yahan kaise aa gayi.ghupp andhera hai.bas ek khidki se prakash dikhayi de raha hai aur andar jane lagti hun to uth jati hun.
ReplyDelete.
ReplyDeleteजबान अगर नई है तो सीखनी ही पड़ेगी !
सुंदर ! सरहनीय अनुवाद !