आज प्रस्तुत है नार्वे के कवि एवं अनुवादक ऊलाव एच. हाउगे (१८ अगस्त १९०८ - २३ मई १९९४) की एक कविता.
मत आओ मेरे पास पूरा सच लेकर : ऊलाव एच. हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मत आओ मेरे पास पूरा सच लेकर.
पूरा समुन्दर लेकर मत आओ जब प्यास लगे मुझे,
जब रोशनी माँगू तो मत आ जाओ स्वर्ग लेकर;
बल्कि एक झलक लाओ, थोड़ी सी ओस, एक कतरा,
जैसे पंछी सिर्फ कुछ बूँदें ले जाते हैं पानी से
और नमक का एक कण ले जाती है हवा.
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सुंदर, प्यारी सी कविता।
ReplyDeletevaah..
ReplyDeleteसराहनीय पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें
...क्यूंकि एक कतरा ही काफ़ी है!
ReplyDeleteसुन्दर!
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteफक़त एक क़तरा ! तृप्त हुआ भाई .
ReplyDeleteसुकोमाल प्रेम कविता जिसमें अधूरेपन को सकारात्मक बताया गया है.जिंदगी में मुकम्मिल लगाने वाला सच भी अंततः आभासी साबित होता है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता ! ज़रूरत से ज्यादा होना भी एक मुसीबत है !
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