फिल्मकार अब्बास कियारोस्तामी की कुछ और कविताएँ...
अब्बास कियारोस्तामी की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
सूरज उगने के पहले ही
मकड़ा
निकल पड़ा है काम पर.
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रुक जाता है
मकड़ा
और ठहरता है पल भर
उगते सूरज को देखने के लिए.
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मकड़े की
दो दिन की मेहनत
बरबाद हो जाती है
बूढ़ी मकानमालकिन की झाड़ू से.
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इस बार
मकड़ा
शुरू करता है
बुनाई
रेशम के पर्दे पर.
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वाह!!!!!
ReplyDelete"इस बार
ReplyDeleteमकड़ा
शुरू करता है
बुनाई
रेशम के परदे पर." देख लीजिए, ताकि सनद रहे, और बखत-ज़रूरत काम आए, कि मकड़ा अपनी एक ग़लती के बाद ही संभल गया. मकड़े से भी कुछ तो सीखा जा ही सकता है न?
makde ke bahane gareeb admi ki peeda darshati kavita.
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद ..एक विचार टूट कर बिखरने की नहीं फिर से जूट जाने की ...
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