Thursday, April 19, 2012

अब्बास कियारोस्तामी : मकड़ा

फिल्मकार अब्बास कियारोस्तामी की कुछ और कविताएँ...    

 
अब्बास कियारोस्तामी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सूरज उगने के पहले ही 
मकड़ा 
निकल पड़ा है काम पर. 
:: :: :: 

रुक जाता है 
मकड़ा 
और ठहरता है पल भर 
उगते सूरज को देखने के लिए. 
:: :: :: 

मकड़े की 
दो दिन की मेहनत 
बरबाद हो जाती है 
बूढ़ी मकानमालकिन की झाड़ू से. 
:: :: :: 

इस बार 
मकड़ा 
शुरू करता है 
बुनाई 
रेशम के पर्दे पर. 
:: :: :: 

4 comments:

  1. "इस बार
    मकड़ा
    शुरू करता है
    बुनाई
    रेशम के परदे पर." देख लीजिए, ताकि सनद रहे, और बखत-ज़रूरत काम आए, कि मकड़ा अपनी एक ग़लती के बाद ही संभल गया. मकड़े से भी कुछ तो सीखा जा ही सकता है न?

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  2. makde ke bahane gareeb admi ki peeda darshati kavita.

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  3. सुन्दर अनुवाद ..एक विचार टूट कर बिखरने की नहीं फिर से जूट जाने की ...

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