पाब्लो नेरुदा की 'सवालों की किताब' से कुछ और सवाल...
कुछ सवाल : पाब्लो नेरुदा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
आज के सौ साल बाद
पोलैंड के लोग क्या सोचेंगे मेरे हैट के बारे में?
वे क्या कहेंगे मेरी कविताओं के बारे में
जिन्होनें कभी एक उंगली भी नहीं डुबोई मेरे खून में?
कैसे नापा जाए भला
मेरी बीयर के मग से गिरते हुए झाग को?
क्या करती है वह मक्खी
जो कैद है पेत्रार्क के एक सानेट में?
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अपना रास्ता भूल जाने वाली रेलगाड़ियाँ
हो सकता है मर गईं हों शर्म से?
किसने नहीं देखा है कभी कड़ुवा घीकुंवार?
कहाँ बोई गईं थीं
कामरेड पाल एलुआर की आँखें?
गुलाब की झाड़ी से उन्होंने पूछा
क्या कुछ काँटों के लिए जगह है तुम्हारे पास?
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निरुत्तर हूँ................
ReplyDeletesahi
ReplyDeletei am a great fan of you manoj
ReplyDeleteबहुत शानदार कविता...एलोविरा को घीकुवांर लिखने की क्या ज़रूरत थी.....
ReplyDeleteबहुत पसंद आयीं, एलोवीरा को हमारे तरफ (मध्य प्रदेश) में ग्वारपाठा कहते हैं..
ReplyDeleteगुलाब की झाड़ी से उन्होने पूछा
ReplyDeleteक्या कुछ काँटों के लिए जगह है तुम्हारे पास ?
बहुत अर्थवान रचनाएँ ! आभार !
ग्वारपाठा ? ध्वन्यात्मक कारणों से तनिक बेमेल लगता है , क्षमा करें . घीकुंवार बेहतर है .
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