राबर्तो हुआरोज़ की 'वर्टिकल पोएट्री' के सिलसिले से एक और कविता...
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
क्या गुलाब को लौटा देनी चाहिए अपनी पंखुड़ियाँ?
मनुष्य को वापस कर देने चाहिए अपने प्यार?
कवि को लौटा देना चाहिए अपने शब्दों को?
दुनिया को लौटा देने चाहिए अपने रूपाकार?
किसने उधारी पर दिया हमें इन सारी चीजों को?
भले ही हम नहीं जानते,
शायद हमारी भूमिका
उन्हें फिर से उधार दे देने की है,
एक अनिश्चित चक्र में
इस उधारी को घुमाते रहने की :
पंखुड़ियों, प्यार, शब्दों और रूपाकारों को.
उधार लेना और कभी वापस न करना,
क्योंकि जान पड़ता है कोई है ही नहीं
जिसे हम लौटा सकें कोई चीज.
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ultimate!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletethanks for the post.
anu
Waah! :)
ReplyDeleteकवि की दृष्टि और कविता का निष्कर्ष... दोनों अद्भुत हैं!
ReplyDeleteभावनाओं का लेन देन तात्कालिकता में ही है.खत्म होने पर कुछ नहीं बचता. वस्तुओं की तरह प्रेम, शब्द, सुंदरता और रूपाकारों का विनिमय नहीं किया जा सकता है.
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