राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता...
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
एक लमहा आता है हमेशा
जब तुम्हें सुस्ताना होता है आदमियों से
जैसे गुलाब सुस्ताता है माली से
या गुलाब से सुस्ताती है फुलवारी.
जैसे पानी सुस्ताता है पानी से
या आकाश से आकाश.
जैसे कोई जूता सुस्ताता है अपने पैर से
या उद्धारक अपनी सलीब से.
जैसे रचयिता सुस्ताता है अपनी रचना से
या अपने रचयिता से सुस्ताती है रचना.
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लेकिन सुस्ताने के पहले है थकन
ReplyDeleteऔर थकन के पहले है
इत्मीनान भरा खाली वक्त !
एक अच्छी कविता के अनुवाद और प्रस्तुतीकरण के लिए आभार !
बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर कविता..जीवंत अनुवाद....सार्थक चयन..
ReplyDeleteसुन्दर कविता..जीवंत अनुवाद....सार्थक चयन..
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