अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
हम किसी से पूछे बग़ैर ज़िंदा रहते हैं : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
खंजर के फल पर
एक तरफ़ तुम्हारा नाम लिखा है
और दूसरी तरफ़ मेरा
जिन्हें पढ़ना आता है
हमें बताते हैं
हमें क़त्ल कर दिया जाएगा
जो दरख़्त उगाता है
हमें एक सेब दे देता है
हम खंजर से सेब को
दो टुकड़े कर देते हैं
हम किसी से पूछे बग़ैर ज़िंदा रहते हैं
और किसी को बताए बग़ैर
मोहब्बत करते हैं
मैंने गिनती सीखी
और याद रखा
तुम तक पहुँचने के लिए मुझे
कितनी सीढ़ियाँ तय करनी पड़ती हैं
एक दिन तुम यह सारी सीढ़ियाँ
नज़्मों की किताब पर रखकर
मुझे दे दोगी
एक दिन मैं तुम्हें बताउंगा
"समुन्दर वहां से शुरू होता है
जहां से खुश्की नज़र आनी ख़त्म हो जाए"
फिर हम जब चाहेंगे
नज़्मों की किताब से
एक वरक़ फाड़कर कश्ती बना लेंगे
और
दूसरा वरक़ फाड़कर
समुन्दर
फिर हम जब चाहेंगे
ज़मीन की गर्दिश रोककर
रक़्स करने लगेंगे
नाचते हुए आदमी के दिल का निशाना
मुश्किल से लिया जा सकता है
:: :: ::
वरक़ : पृष्ठ, पन्ना
गर्दिश : चक्कर
रक़्स : नृत्य
अद्भुत सोच... सुन्दर कविता!
ReplyDeleteआभार!
.
ReplyDeleteनाचते हुए आदमी के दिल का निशाना
मुश्किल से लिया जा सकता है !
अद्भुत और बहुत सुंदर कविता और उतना ही सुंदर,सहज अनुवाद ! आभार मनोज जी !
आज की सुबह को आबाद कर दिया.....मनोज..इतना शानदार अनुवाद, जी करता है तुम्हारा स्नेह से माथा चूम लूँ.......
ReplyDeletevah Manoj ji,kitani bar padhu ,kitani sundar rachana hai,man parfullit ho gaya hai,aaj ka din achcha karane ke liye DHANAYABAD...
ReplyDeleteवाह.........
ReplyDeleteलाजवाब चयन और बेहतरीन अनुवाद मनोज जी...
शुक्रिया.. .
इतने अच्छे अनुवाद जैसे हम उन्हें मूल भाषा में लिखे गये हो
ReplyDeleteआपके अनुवाद स्वाभाविक है अफजाल अहमद हमारे समय के जरूरी कवि है
कविमित्र विजय कुमार नें पहल के लिये उनके अनुवाद किये थे
आपका काम बहुत अदभुत है दुनियां भर के कवि एक साथ
पढ्ने को मिलते है शुभकामनाये और बधाई
स्वप्निल श्रीवास्तव