Sunday, April 22, 2012

ऊलाव हाउगे की कविता

ऊलाव हाउगे की एक और कविता... 

 
थोड़ा ऊपर निशाना लगाता हूँ मैं : ऊलाव एच. हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

रास्ते से बहुत इधर-उधर नहीं हो सकता एक तीर,  
अपना लक्ष्य भेदने के लिए. मगर कोई अच्छा तीरंदाज 
गुंजाइश रखता है दूरी और हवा की खातिर. 
इसलिए जब तुम पर साधता हूँ निशाना, 
थोड़ा ऊपर निशाना लगाता हूँ मैं.  
                    :: :: :: 

5 comments:

  1. काफी कुछ कहने वाली आखेट को प्रेम के समान मानने वाली विलक्षण कविता.

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  2. यूं तो fb पर शेयर की गयी हर कविता इस ब्लॉग को शुरू से पढ़ लिए जाने के लिए उकसाती है हर रोज़ लेकिन इस कविता से आज शुरुआत हो ही गयी....

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  3. थोड़ा ऊपर ...........यह चाभी है इस कविता कि ! कविता भी तो थोड़ा ऊपर निशाना लगती है ! वाह गहन भाव है कविता के ! आभार मनोज जी !

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  4. रोज सुबह एक अच्छी कविता आपके ब्लाॅग पर पढ़ती हूं और उम्मीद करती हूं कि दिन ऐसा ही सुन्दर और अर्थपूर्ण बीते। मैं ब्लागर्स की दुनिया मंे नयी हूं। कृपया मेरे ब्लाग पर भी आएं।
    धन्यवाद!
    कृति
    srijan@riseup.net
    www.kritisansar.noblogs.org

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  5. क्या करू, कमेंट करने की विधि ही को समझ नहीं पा रही? इस अनूठे काम से मैं परिचित नहीं थी. ग़ज़ब है. अच्छा , नीचे मेरा नाम तो आ ही गया है. इनमे कई कवियों के अनुवाद मैनें खुद भी किये है, और रुस्तम ने भी. कुछ तो कविताएं भी वही हैं. मज़ा आ गया यह देख कि क्या अंतर है. अनुवादक को दूसरे का किया काम पसंद आये, यह तो बहुत अच्छी बात है.

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