वेरा पावलोवा की नोटबुक से एक अंश आप यहाँ पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है अगली किस्त...
वेरा पावलोवा की नोटबुक से
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेरे सीने में अब भी खुशियों के लिए बहुत सारी जगह है! और मैं जिधर भी देखती हूँ, मुझे अपनी अभी तक अनलिखी किताबों के उद्धरण दिखाई पड़ते हैं.
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कविता में कोई शब्द, शब्दकोष में दिए गए अपने अर्थ के समतुल्य नहीं होता क्योंकि या तो कविता में उसका अर्थ बिलकुल अलग होता है, या वही होता है मगर हजार गुना अधिक सूक्ष्म.
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मेरी नोटबुक में ड्राफ्ट बमुश्किल पढ़ने में आ सकने वाली घसीटामार लिखावट में लिखे जाते हैं; दूसरी कापी में त्रुटिहीन सुन्दर लिखावट में. मेरी हस्तलिपि मेरे चिंतन से कहीं बेहतर है.
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टालस्टाय: "मनुष्य को इस तरह जीवित रहना चाहिए जैसे बगल के कमरे में कोई प्रिय बच्चा आखिरी साँसें ले रहा हो." जहां तक मेरी बात है, मैं इस तरह जीती हूँ जैसे वह बच्चा मेरी कोख में दम तोड़ रहा हो.
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-- क्या तुम समझते हो कि समझना नामुमकिन है?
-- हाँ, मैं समझता हूँ.
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कविताओं में शब्दों को मैं उसी तरह रखती हूँ जैसे किसी विदेश यात्रा के लिए मैं सूटकेस पैक करती हूँ, सबसे जरूरी, सबसे आकर्षक, सबसे हल्के, और सबसे चुस्त को चुनते हुए.
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एक आदर्श कविता: जिसकी हर पंक्ति को किसी किताब के नाम के लिए इस्तेमाल किया जा सके.
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(जारी...)
आदर्श कविता की परिभाषा बेजोड़ है!
ReplyDeleteवाह!
बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteसादर ||
कविता लिखने के बारे में बहुत काम की बातें साझा करने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteवेरा से परिचय आपके जरिए ही हुआ था. उन्हें पढ़ना हमेशा आनंददायी होता है.
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeletekhubsurt prstuti ke liye dhanyavad.
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