इज़त सरजलिक की एक और कविता...
इस्तांबुल में मेरा पड़ाव : इज़त सरजलिक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कई संस्करण हैं
इस्तांबुल में मेरे पड़ाव के.
एक के अनुसार,
वह संदिग्ध राजनीतिक किस्म का पड़ाव था.
एक अन्य के अनुसार,
उसका ताल्लुक मेरे रूमानी उपन्यासों से था.
तीसरे संस्करण में तो,
नशीली दवाओं की फरोख्त तक का जिक्र है.
निस्संदेह, किसी की रूचि इस तथ्य में नहीं
कि मैं कभी इस्तांबुल नहीं गया.
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कमाल.....
ReplyDeleteकितना मुश्किल है इस तरह की आसान सी कविता लिखना...
अनु
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ReplyDeleteवाह ,बहुत अच्छी कविता .............. शानदार व्यंग ! ऐसे लाल बुझक्कड़ बहुतायत में पाये जाते हैं !
आभार मनोज जी !
कई बार असत्य होते हुए भी किसी बात को इतनी बार अलग अलग तरह से कहा जाता है कि उसके झूठ होने की गुंजाइश ही नहीं बचती है.
ReplyDeletewaah.waah
ReplyDeleteअपने अंत में कविता झकझोर देती हैं ..!! बधाई
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