एर्नेस्तो कार्देनाल की एक और कविता...
तोते : एर्नेस्तो कार्देनाल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेरा दोस्त मिशेल कमान अधिकारी है सोमोतो में,
होंदुरास की सरहद के नजदीक,
उसने मुझे तोतों से लदे ट्रक के पकड़े जाने के बारे में बताया
जिसमें चोरी छिपे उन्हें ले जाया जा रहा था अमेरिका
उन्हें अंग्रेजी बोलना सिखाने के लिए.
१८६ तोते थे उस पर, जिसमें से ४७ तोते पहले ही मर चुके थे अपने पिंजड़ों में.
वह उन्हें वापस उस जगह ले गया जहां से उन्हें पकड़ा गया था,
और जब ट्रक पहुँच रहा था पहाड़ों के पास मैदान कही जाने वाली एक जगह के करीब
जहां के थे वे तोते
(उन मैदानों के पीछे विशालकाय दिखते थे पहाड़)
खुशी से तोते फड़फड़ाने लगे अपने पंख
और चिपका लिया उन्होंने खुद को अपने पिंजड़े की दीवारों से.
और जब खोले गए उनके पिंजड़े
तीर की तरह उड़ गए वे सभी एक ही दिशा में अपने पहाड़ों की तरफ.
ठीक यही किया क्रान्ति ने हमारे साथ, मुझे लगता है:
इसने आजाद किया हमें पिंजड़ों से
जिनमें हमें ले जाया जा रहा था अंग्रेजी बोलने के लिए.
और हमें अपनी मातृभूमि वापस ले आई यह जहां से उखाड़ा गया था हमें.
तोते की तरह हरी वर्दी वाले कामरेडों ने
तोतों को वापस दिलाए उनके हरे-भरे पहाड़.
मगर मर चुके थे ४७.
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क्रांति और तोतों का रूपक काफ़ी दिलचस्प है.
ReplyDeleteमरने वाले ४७ क्रन्तिकारी तोतों की याद में लिखी सुन्दर कविता.
ReplyDelete47 मर चुके थे ........... आज़ादी के लिए कुछ कुर्बानियाँ तो देनी ही पड़ती हैं !.......... अच्छी कविता !आभार मनोज जी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी...
अनु
क़माल है, अपने यहाँ के अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की युयुत्सु कथाएँ भी रेफ्लेक्ट हो रही हैं इस कविता में, अन्य अर्थों के साथ.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक. बहुत शुक्रिया मनोज भाई.
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