Monday, July 2, 2012

बिली कालिन्स : भुलक्कड़पन

बिली कालिंस की यह कविता मुझे बहुत पसंद है, आप भी पढ़िए...   

 
भुलक्कड़पन : बिली कालिन्स 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सबसे पहले जाता है लेखक का नाम 
उसके पीछे-पीछे अदब से जाता है शीर्षक, कथानक, 
वह मर्मभेदी अंत, पूरा उपन्यास, जो अचानक बन जाता है ऐसा 
कि उसे कभी पढ़ा न हो आपने, कभी सुना भी न हो नाम, 

जैसे एक-एक कर उन स्मृतियों ने, जिन्हें पनाह दिया करते थे आप 
तय किया हो मस्तिष्क के दक्षिणी गोलार्ध में जा बसने का, 
मछुआरों के किसी छोटे से गाँव में जहां फोन न हो कोई.   

नौ देवियों के नामों को तो पहले ही अलविदा कह चुके थे आप 
और द्विघाती समीकरण को देखा था अपना बोरिया-बिस्तर बांधते 
और अब भी जबकि आप याद कर रहे हैं ग्रहों के क्रम को, 

फिसलती जा रही है कोई और चीज, एक राष्ट्रीय पुष्प शायद, 
एक चाचा जी का पता, पराग्वे की राजधानी.  

जिस भी चीज को याद करने के लिए हाथ-पैर मार रहे हों आप 
आपकी जुबान की नोक पर तो नहीं ही अटकी है वह 
न ही किसी अज्ञात कोने में छिपी है आपकी तिल्ली के. 

बह चुकी है वह एक अंधेरी मिथकीय नदी से होकर 
ल से शुरू होता है जिसका नाम, जहां तक याद आ रहा है आपको   

विस्मृति के अपने ठीक रास्ते पर हैं आप, जहां आप मिलेंगे 
उन लोगों से जो भूल चुके हैं तैरना और सायकिल चलाना भी. 

कोई ताज्जुब नहीं कि आप उठते हैं आधी रात को 
एक चर्चित लड़ाई की तारीख देखने के लिए युद्ध की किसी किताब में. 
कोई ताज्जुब नहीं कि खिड़की का चाँद निकल गया लगता है 
उस प्रेम कविता में से जो जुबानी याद हुआ करती थी आपको.  
                         :: :: :: 

इस कविता का एक एनीमेटेड वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.

7 comments:

  1. बहुत ही खूब कविता है, आज सुबह ही इस लेखकीय भुलक्कड़पन से रू ब रू हुई हूँ....

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  2. beautiful......
    loved its animated version more....
    as hindi translation is a bit tough to understand....

    thanks

    anu

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  3. The translation picturesquely depicts in totality what animated video wishes to convey!
    Superbly translated, as usual!

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  4. Adbhut ! kaise likhne wale sabke man ki we baten kah jate hain jinhe ham samajhte to hain lekin shabd dena bhhol gaye hote hain. kamaal ki kavita hai. main isase bahut peedit hoon isliye main bahut achhe se samajh paya ki prem kavita se chand kaise nikal jata hai

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  5. यह सचमुच विस्मरण का वह छोर है जहां न ऐतिहासिक युद्धों की कोई तारीख अब याद रह गयी है न उस प्रेम कविता की वह बहुत ज़रूरी पंक्ति, जो कविता कभी जुबानी याद हुआ करती थी । एनिमेटेड कविता भी बहुत ही अच्छी है, मनोज जी। आज देर तक कई कई बार सिलविया पाथ की आवाज़ सुनता रहा और उसकी ज़िंदगी की त्रासदी की स्मृतियाँ हांट करती रहीं। काश वह सब भी भुलाया जा सकता ..... ! सच्चे कवि का जीवन शायद ऐसा ही रहेगा ... सदा। कोई निजात नहीं ।
    आपका अनुवाद और आपकी पसंद दोनों का तो हमेशा ही कायल रहा हूँ। एक बार फिर बधाई ...

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  6. बहुत खूबसूरती से भुलक्कडपन की तस्वीर खींची गयी है कविता में ! अक्सर हम सब इससे रू-ब-रू होते रहते हैं !
    सुंदर अनुवाद और प्रस्तुति के लिए आभार !

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  7. बढ़िया कविता, उतना ही बढ़िया अनुवाद. एनिमेशन का तो जवाब ही नहीं!

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