हुदा अबलान का जन्म १९७१ में यमन में हुआ. सना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री. अब तक छः कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. यमनी राइटर्स यूनियन की महासचिव भी रह चुकी हैं.
बुहारन : हुदा अबलान
(अनुवाद : मनोज पटेल)
उसके चले जाने के बाद
उसका कुछ भी नहीं बचा मेरे पास
मेरे सिवाय
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प्रेमिका और वह कहीं ना कहीं एक ही हैं.कविता में किसी का चले जाना उसके बने रहने को भी दिखाता है.
ReplyDeleteप्रेम का गणित...
ReplyDelete.
ReplyDeleteकभी कभी तो इतना भी नहीं बचाता किसी के चले जाने के बाद !
खूबसूरत कविता ! आभार !
कहने का ढंग विशिष्ट है. जो बचा है, कुछ दिन बाद वह भी खत्म हो जाएगा, जो बचा है वह भी नहीं बचेगा. पर, आज के लिहाज़ से बात ज़ोरदार है.
ReplyDeleteअशब्द छोड़ दिया इस रचना ने.मिसिर जी की बात भी सही है.बिंदु में सरिता दर्शन.....!! शुक्रिया हुदा अबलान.शुक्रिया मनोज भाई.
ReplyDeleteवो हममें बसा रहा तो सबको सबकुछ बचा रहा...
ReplyDeleteइन तीन पक्तियों में तो सारा जीवन समा गया है। बेमिशाल...