Wednesday, July 11, 2012

ऊलाव हाउगे की कविता

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
नदी का उफनना : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मछली उफ़ नहीं करती 
नदी के उफनने पर. 
पर बेचारा बूढ़ा ऊदबिलाव 
घबरा जाता है अपने घरों को लेकर.  
            :: :: :: 

5 comments:

  1. बिम्बों के माध्यम से गहरी बात कह दी है ....

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  2. बहुत खूब.............. जमीन और पानी दोनों पर आश्रित रहने वाले, दोनों के असहज होने पर परेशानी मे पड़ जाते हैं !
    साभार बधाई !

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