चार्ल्स सिमिक की एक और कविता...
चार्ल्स सिमिक की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं रांगे से कहता हूँ
क्यों पड़ने दिया तुमने खुद को
एक गोली के भीतर?
क्या तुम भूल चुके हो कीमियागरों को?
सोने में बदलने की
छोड़ चुके हो उम्मीद?
कोई जवाब नहीं देता.
रांगा. गोली.
इस तरह के नामों के साथ
लम्बी और गहरी होती है नींद.
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...........इस तरह के नामों के साथ लंबी और गहरी होती है नींद !
ReplyDeleteजो संवेदनशून्य और जड़ हो चुके हैं ,उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ! वे आत्मविकास की सारी उम्मीदों को छोड़ चुके हैं !
बहुत अर्थपूर्ण और गंभीर कविता ! आभार मनोज जी !
रहस्यमय.
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