इज़त सरजलिक की एक और कविता...
उसकी सड़क : इज़त सरजलिक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वह भी सपने सजाता था चौरस हुई घास के,
स्त्रियों के खुले हुए ब्लाउजों के.
नौजवान था वह.
भरोसा नहीं था उसे अगले जन्म में
अभी सिर्फ अठ्ठारह की उम्र थी उसकी.
तुमने नहीं देखा था
जब समय बदल रहा था उसके चेहरे को.
तुम जानते हो सिर्फ उसकी शोहरत के बारे में.
मगर मैं तबसे उसे जानता था
जब पुराने इंजनों और पटरों से
उसने बनाया था एक हवाईजहाज जो उड़ नहीं पाया कभी.
जब उसने बताया था अपने पिता से
कि उनकी लड़ाई में हारना ही होगा किसी न किसी को,
जब दो गिरफ्तारियों के बीच उसने पूछा था अपनी माँ से
माँ, क्या तुम प्यार करती हो मुझसे?
और उनकी धुंधलाई आँखों के ऊपर से बहुत देर तक
वह निहारता रहा था सड़क को,
वही सड़क
जो अब उसके नाम पर है.
(1963)
:: :: ::
वाह!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन...........
अनु
वही सड़क
ReplyDeleteजो अब उसके नाम पर है.
आभारी हैं हम सब मनोज...
behtarin rachanaa kaa behatarin anuvaad. aabhaar.
ReplyDeleteयानी निराशा के बीच उम्मीद की तलाश...
ReplyDeleteयह शायद एक स्मृतिन्जली है. खूबसूरत.
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, तेजाब :- मनचलों का हथियार - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
ReplyDeleteइनका लेखन हिला देता है मित्र ...मैंने उस विभत्सता पर कई फिल्मे देखी हैं , और राजनीति विज्ञानं का विद्यार्थी होने के नाते उस पूरी घटना से गहरे जुड़ा रहा हूँ ....उस पागलपन के बीस सालों बाद इजत को पढ़ना अपने संवेदनाओं को पुनः माजने जैसा लग रहा है ...बहुत शुक्रिया मनोज भाई ...
ReplyDeleteसंघर्ष और हार से भरे जीवन वाले व्यक्ति को मरणोपरांत मिली शोहरत क्या उसके लिए कोई तसल्ली देती है.क्यों ना जीते जी उसे वह स्थान दिया जाये जिसका वह हक़दार है.
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