फिलिस्तीनी कवि नजवान दरवेश की कविता...
उड़ान : नजवान दरवेश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुम उड़ान भरते हो पृथ्वी से
पर उतरना ही पड़ता है आखिर.
तुम उतरोगे
पैरों के या मुंह के बल, उतरना होगा तुम्हें
विमान में विस्फोट होने पर भी,
तुम्हारे पुर्जे, तुम्हारे ज़र्रे
उतरेंगे ही यहाँ
तुम जड़ दिए गए हो इसमें:
यह पृथ्वी, तुम्हारा छोटा सा सलीब.
:: :: ::
ज़बरदस्त...
ReplyDelete"पैरों के आ मुँह के बल, उतरना होगा तुम्हें... यह पृथ्वी, तुम्हारा चोटा सा सलीब।" विध्वंसक उड़ानों में जुटे आतताइयों को जमीनी हकीकत से रूबरू कराती तल्ख कविता। कविता का अन्दाज सीधे कलेजे में उतरने वाला है। साझे के लिए साधु भाई मनोज पटेल जी...
ReplyDeleteवाह..............
ReplyDeleteबेहतरीन....
अनु
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ReplyDeleteलाजवाब कविता ..बेहतरीन अनुवाद
ReplyDeletegazab
ReplyDeleteयहीं के हैं यहीं समाप्त हो जाना है... पृथ्वी, हमारा सलीब!
ReplyDeleteअद्भुत!
behtareen baat..ye prithavi..tumhara chhota saa saleeb..waahh..
ReplyDelete'जैसे उड़ि जहाँ को पंक्षी फिरि जहाज पर आवै ...मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै '
ReplyDeleteसुंदर चयन मनोज जी आभार !
मनोज भाई.सुन्दर रचना.शुक्रिया.
ReplyDeleteअंततः मृत्यु ही परम सत्य है.हर उड़न के बाद जमीन पार आना ही होता है.
ReplyDeleteकविता अच्छी है ,हालांकि मैं पृथ्वी को सलीब नहीं मानता ! माँ अपने बच्चे के लिए सलीब नहीं होती !
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद के लिए बधाई मनोज जी !