एर्नेस्तो कार्देनाल की 'सुभाषित' श्रृंखला से एक और कविता...
एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
इलियाना: अन्द्रोमेदा की आकाशगंगा,
सात लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर,
किसी निरभ्र रात जिसे देखा जा सकता है नंगी आँखों
करीब है तुम्हारी बनिस्बत.
अन्द्रोमेदा से दूसरी एकाकी आँखें देख रही होंगी मुझे
अपनी रात में. तुम नहीं दिखती मुझे.
इलियाना: समय में है दूरी, और उड़ता जाता है समय.
२० करोड़ मील प्रति घंटे की रफ़्तार से
बढ़ता जा रहा है ब्रह्माण्ड शून्य की ओर.
और तुम जैसे लाखों वर्ष दूर हो मुझसे.
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प्रिय से दूरी को प्रकाश वर्षों में नापना विरह की शिद्दत को बयान करता है !
ReplyDeleteअच्छी कविता मनोज जी !
बहुत सुन्दर...............
ReplyDeleteतारों से भी दूर....तुम कहाँ हो???
वाह!!!
अनु
अलग तरह की रचना बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसमय दूरी बनकर उड़ता जाता है और प्रियजनों की कमी महसूस कराता रहता है.
ReplyDeleteदुरियाँ का अनोखा परिमाण.
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