ऊलाव हाउगे की एक और कविता...
इन्द्रधनुष : ऊलाव हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पुल के ऊपर पुल --
तीन इन्द्रधनुष!
हम कहाँ जाने वाले हैं,
क्या सोच सकती हो तुम?
पहला तो बिलाशक
ले जाता है जन्नत को,
और दूसरा जाकर ख़त्म होता है
पाले और बर्फ में.
और तीसरा? यह
इधर चला आया
इस बगीचे में
मेरे और तुम्हारे साथ!
:: :: ::
बहुत सुन्दर :-)
ReplyDeleteबेहतरीन !!!!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन !!!!
ReplyDeleteऔर जो चला आया है मेरे और तुम्हारे साथ ,हमारी जिंदगी में रंग भरने के लिए ,उसिपर चलना कोहा हमें !
ReplyDeleteसुंदर कविता !आभार !
वाह........
ReplyDeleteइससे खूबसूरत कुछ हो सकता था क्या???
अनु
जन्नत और पाले में जाने वाले नहीं बल्कि मन में खिलने वाला इन्द्रधनुष हमारे साथ रहता है.
ReplyDeleteओह....!! बहुत सुन्दर-
ReplyDeletekavitayen padhkar apane bheetar utarate hi chale gaye ..
ReplyDelete