Thursday, July 5, 2012

जेन केन्यन : नीला कटोरा

अमेरिकी कवियत्री जेन केन्यन (२३ मई १९४७ -- २२ अप्रैल १९९५) की एक कविता...   

 
नीला कटोरा : जेन केन्यन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हमने दफना दिया बिल्ले को आदिम लोगों की तरह 
उसके कटोरे के साथ. अपने हाथों से 
दुबारा भर दिया गड्ढे में 
रेत और कंकड़. 
                       सरसराते और पट-पट करते 
वे गिरते रहे उसके बगल, 
उसके लम्बे लाल रोवों पर, उसके पंजों के बीच के 
सफ़ेद परों पर, और उसकी 
लम्बी, बिल्कुल गरुण जैसी नाक पर. 

फिर हम खड़े हुए और झाड़ा एक-दूसरे को. 
कि गम और भी हैं ज़माने में इसके सिवाय. 

बाक़ी के दिन काम किया हमने चुपचाप, 
खाया, ताका किए और सोए. मौसम खराब रहा 
पूरी रात; साफ़ हुआ है अब जाकर, और एक राबिन चिड़िया  
चहचहा रही है एक टपकती हुई झाड़ी में से, 
उस पड़ोसी की तरह अच्छी होती है जिसकी नीयत 
पर जो हमेशा बोलता है गलत बात.  
                  :: :: :: 

5 comments:

  1. ..... उस पड़ोसी की तरह अच्छी होती है जिसकी नियत
    पर जो हमेशा बोलता है गलत बात !

    गलत मौका सही बात को भी गलत कर देता है ! सुंदर अनुवाद किया आपने मनोज जी !बधाई !

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  2. बहुत बढ़िया अनुवाद....
    शुक्रिया

    अनु

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  3. बहुत खूब...क्या बात है...!

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  4. बिल्ले की मौत पर चहचहाती चिड़िया आदमियों की फितरत दिखाती है.

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  5. बहुत ही संवेदनशील रचना.

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