दार्शनिक, निबंधकार, अनुवादक एवं कवि इज़त सरजलिक का जन्म १६ मार्च १९३० को बोस्निया एवं हर्जोगोविना के दोबोज में हुआ था. १९४५ में वे सरायेवो चले गए और फिर जीवन भर वहीं रहे. उनके ३० कविता-संग्रह प्रकाशित हैं और कविताओं का अनुवाद १५ भाषाओं में हो चुका है. वे खुद को इस कदर बीसवीं सदी का मानते थे कि इक्कीसवीं सदी आ जाने के बाद भी दोस्तों के साथ खतोकिताबत में साल का ज़िक्र १९९९+१, १९९९+२ के रूप में किया करते थे. २ मई २००२ को उनकी मृत्यु हो गई. फिलहाल उनकी दो कविताएँ पढ़िए...
इज़त सरजलिक की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हमारी जिंदगियों में युद्ध
दो बाल्कन और दो विश्व युद्धों को
देखा है मार्को बसिक ने अपनी ज़िंदगी में.
यह पांचवां है उसका.
मेरी और मेरी संतान के लिए -- दूसरा.
और जहां तक व्लादिमिर की बात है
अठ्ठारह महीने की उसकी उम्र को देखते हुए
फिलहाल यह कहा जा सकता है
कि अपनी आधी ज़िंदगी
वह गुजार चुका है युद्ध में.
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पूर्व-यूगोस्लाविया के अपने दोस्तों से
यह क्या है, जो आ पड़ा हम पर,
मेरे दोस्तों?
मुझे नहीं पता
कि क्या कर रहे हो तुम.
क्या लिख रहे हो.
पी रहे हो किसके साथ.
पढ़ रहे हो कौन सी किताबें.
अब तो यह भी नहीं पता,
कि क्या अब भी हैं हम दोस्त.
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सिर्फ अठारह महीनों में ............. वह गुजर चुका अपनी आधी जिंदगी युद्ध में !!
ReplyDeleteयद्ध में बिछड़ गए लापता दोस्तों के संबंध में अनिश्चय !
दोनों कवितायें बढ़िया है ! सहज अनुवाद के लिए बधाई मनोज जी को !
इतने सारे सवालों के बाद मूल बात.जिसे दोस्त कहा वह दोस्त है भी या नहीं.
ReplyDeleteइतने सारे सवालों के बाद मूल बात.जिसे दोस्त कहा वह दोस्त है भी या नहीं.
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