Friday, July 27, 2012

एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता

'सुभाषित' श्रृंखला से ही एक और कविता...   

 
एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हर शाम अपनी माँ के साथ वह टहला करती लैंडस्ट्रासे भर में 
और बाज़ार के मोड़ पर, हर शाम, 
वहां हिटलर इंतज़ार करता होता, उसे गुजरते देखने के लिए. 
टैक्सियाँ और बसें भरी होतीं चुम्बनों से 
और भाड़े पर नाव ले रहे होते जोड़े डेन्यूब पर. 
मगर उसे नहीं आता था नाचना. उससे बात करने की कभी हिम्मत नहीं हुई उसकी. 
बाद में वह गुजरती अपनी माँ के बिना ही, किसी रंगरूट के साथ. 
और उसके भी बाद वह कभी गुजरी ही नहीं उधर से. 
यही वजह है कि गेस्टापो झेला हमने, आस्ट्रिया पर कब्जा, 
और विश्व युद्ध. 
                         :: :: :: 
डेन्यूब : डेन्यूब नदी 

8 comments:

  1. काश, हिटलर के जीवन में भी प्रेम आता तो क्या वह इतना जालिम हो पाता ! प्रेम की असफलता का क्षोभ ही कहर बन गया !
    बहुत सच्ची बात कहती है कविता !
    सुंदर,सहज अनुवाद !

    ReplyDelete
  2. गेस्टापो झेलने के साथ-साथ ऑस्ट्रिया पर कब्ज़े और दूसरी बड़ी लड़ाई के रूपक काफ़ी कुछ कह जाते हैं.

    ReplyDelete
  3. हिटलर ने प्रेम घटित होने नहीं दिया . वह उसे अधिकार की तरह 'पाना' चाहता था . सो उसे नहीं मिला और हिटलर मे ज़हर भर गया .......

    ReplyDelete
  4. हितलर और गेस्टापो ऑस्ट्रेलिया पर कब्ज़ा और विश्व युद्ध. प्रेम के लिए देश और मन में शांति चाहिए.विनाशक समय में दुखदायी घटनाएँ ही घटित होती हैं.

    ReplyDelete
  5. प्रेम का य़ुद्ध और शांति के बीच सेतु निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका की तरफ कविता का प्रतीकात्मक इशारा काबिल-ए-तारीफ है। बहुत-बहुत शुक्रिया मनोज जी कविता के सुंदर अनुबाद के लिए।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...