'सुभाषित' श्रृंखला से ही एक और कविता...
एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हर शाम अपनी माँ के साथ वह टहला करती लैंडस्ट्रासे भर में
और बाज़ार के मोड़ पर, हर शाम,
वहां हिटलर इंतज़ार करता होता, उसे गुजरते देखने के लिए.
टैक्सियाँ और बसें भरी होतीं चुम्बनों से
और भाड़े पर नाव ले रहे होते जोड़े डेन्यूब पर.
मगर उसे नहीं आता था नाचना. उससे बात करने की कभी हिम्मत नहीं हुई उसकी.
बाद में वह गुजरती अपनी माँ के बिना ही, किसी रंगरूट के साथ.
और उसके भी बाद वह कभी गुजरी ही नहीं उधर से.
यही वजह है कि गेस्टापो झेला हमने, आस्ट्रिया पर कब्जा,
और विश्व युद्ध.
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डेन्यूब : डेन्यूब नदी
excellent!!!
ReplyDeleteanu
काश, हिटलर के जीवन में भी प्रेम आता तो क्या वह इतना जालिम हो पाता ! प्रेम की असफलता का क्षोभ ही कहर बन गया !
ReplyDeleteबहुत सच्ची बात कहती है कविता !
सुंदर,सहज अनुवाद !
ओह.........!!!
ReplyDeleteगेस्टापो झेलने के साथ-साथ ऑस्ट्रिया पर कब्ज़े और दूसरी बड़ी लड़ाई के रूपक काफ़ी कुछ कह जाते हैं.
ReplyDeletelAndstraasse ya Laendstraase
ReplyDeleteहिटलर ने प्रेम घटित होने नहीं दिया . वह उसे अधिकार की तरह 'पाना' चाहता था . सो उसे नहीं मिला और हिटलर मे ज़हर भर गया .......
ReplyDeleteहितलर और गेस्टापो ऑस्ट्रेलिया पर कब्ज़ा और विश्व युद्ध. प्रेम के लिए देश और मन में शांति चाहिए.विनाशक समय में दुखदायी घटनाएँ ही घटित होती हैं.
ReplyDeleteप्रेम का य़ुद्ध और शांति के बीच सेतु निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका की तरफ कविता का प्रतीकात्मक इशारा काबिल-ए-तारीफ है। बहुत-बहुत शुक्रिया मनोज जी कविता के सुंदर अनुबाद के लिए।
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