जैक एग्यूरो की एक और कविता...
अपने साजिश रचने वाले आंसुओं के लिए सानेट : जैक एग्यूरो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेरे आंसू इतने शर्मीले क्यों हैं कि वे मेरी आँखों के पीछे छिप जाते हैं?
मैं उनसे कहता हूँ कि दौड़ना और खेलना सेहतमंद होता है मगर वे
डरते हैं कि यदि वे शुरू हो गए तो रुकेंगे नहीं और मैं उनकी
झील में डूब जाऊंगा. मैं उनसे कहता हूँ, "परवाह किसे है?
उसके साथ के बिना तो अब मैं बेकार ही हूँ." हर रात तुम्हारी तस्वीर
निहारते हुए मैं उन्हें भड़काने की कोशिश करता हूँ और उसे वह सब
बताने की कोशिश करता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ -- कि मैं इसलिए शांत
नजर आता हूँ क्योंकि मैं भीतर से खोखला हूँ. उनसे अपनी देह को दफनाने की
गुजारिश करता हूँ क्योंकि मेरी आत्मा बहुत पहले ही जुदा हो चुकी है. मैं कहता हूँ,
"आंसुओं, कमरे को भर डालो ताकि मैं समंदर में दफ़न नाविक की तरह हो सकूं,
अपने ही खारे पानी में डूबा हुआ," मगर वे आपस में और मजबूती से सिमट जाते हैं,
और मैं उस ज़र्द पत्ती की तरह कांपता रह जाता हूँ जिसे गिरना नहीं है.
मैं रोना और मर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं नहीं पा सका जिसे मैं प्यार करता हूँ,
मगर मेरे आंसू और मौत मुझे डाल पर ही मुरझाने देने की साजिश रचते हैं.
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Jack Agueros Poems in Hindi Translation
अच्छा लगा जैक ऐग्युरो की कविता पढ़ना ...
ReplyDeleteवेदना और असहायता का बिलकुल अलग परिमाण.
ReplyDeleteआखिरी दो पंक्तियों में पूरी कविता का मर्म उतर आया है. कविता अच्छी लगी.
ReplyDeleteBehtreen...
ReplyDeleteBehtreen...
ReplyDeleteबढिया ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ! जो आँसुओं दास्ताँ कह रहा है उसे ही कैसे डुबो दें !अनुवाद सुंदर किया है !
ReplyDeleteआंसू और मौत ही नहीं जिंदगी भी डाली पर ही मुरझा देती है.
ReplyDeleteमेरे आँसू और मौत मुझे डाल पर ही मुरझाने देने की साजिश रचते हैं ........
ReplyDeleteजीवन के माने भी तो इसी से समझ में आते है... मनोज पटेल जी बेहद भावपूर्ण अनुवाद के लिए शुक्रिया... मन तर हो गया...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इस कविता को पढ़ना ...कई बार डूबा उतराया खुद को जरा सा भड़काने की कोशिश भी किया ...पर अंत में उदास और जर्द पत्ते कि तरह कांप कर रह गया बस |
ReplyDeleteशायद अभी गिरना नहीं है !