Saturday, July 7, 2012

इज़त सरजलिक : सरायेवो में किस्मत

इज़त सरजलिक की एक और कविता...   

 
सरायेवो में किस्मत : इज़त सरजलिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सब कुछ मुमकिन है 
सरायेवो की 
१९९२ की बसंत ऋतु में: 

कि आप खड़े हों एक कतार में 
ब्रेड खरीदने के लिए
और पहुँच जाएं किसी इमरजेंसी वार्ड में 
अपनी टाँगे कटवाए हुए. 

और तब भी कह सकें 
कि किस्मतवाले रहे आप. 
          :: :: :: 

11 comments:

  1. दिल दहलाने वाली कविता.घायल होकर भी जिन्दा रहने को खुशकिस्मती मानने की स्थिति सच में दुखद है.

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  2. ऐसे खतरनाक हालात कि टांगें कटवा कर भी कोई सस्ते में छूट जाए ! कमाल है ! आभार मनोज जी !

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  3. यह तो अपने देश में भी कभी भी कहीं भी हो सकता है...

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  4. वाह....
    ऐसे मार्मिक विषय पर इतनी सहज कविता?????
    लाजवाब...

    अनु

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  5. ye kitne dukh ki baat hai fir bhai sach to yahi hai.

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  6. जो लोग बोस्निया -हर्जेगोविना के हालात से परिचित रहे हैं , वे जानते हैं कि यह कविता उस समय के किस सच पर उंगली रखती है | युगोस्लाविया का वह रक्तपूर्ण विभाजन यूरोप के माथे पर लगा ऐसा बदनुमा दाग है , जिसे आसानी से नहीं धोया जा सकता ...| इस कविता को सामने लाने के लिए आपका आभार ....

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  7. जहां सर्वस्व लूटने वाला हो वहाँ जो बच जाये वही खुशकिस्मती!
    अच्छी कविता!

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  8. यह कविता पूरी तरह मेरे लिए है.

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