ऊलाव हाउगे की एक और कविता...
देखता हूँ कि तुम सीख गए हो : ऊलाव हाउगे
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मुझे पसंद है
कि तुम
इस्तेमाल करो
कम शब्द,
कम शब्द और
छोटे वाक्य
जो
पन्ने से होकर
बारिश की फुहार की तरह गिरें
अपने बीच
रोशनी और हवा लिए हुए.
देखता हूँ कि तुम सीख गए हो
जंगल में
ढेर लगाना लकड़ी का,
बेहतर है
ऊंचा ढेर लगाना उसका
तब सूख जाएगी वह;
अगर लम्बाई में और नीचा लगा दोगे उसे
तो सड़ जाएगी लकड़ी.
:: :: ::
बहुत बेहतरीन पंक्तियां। सीखने को बहुत सुंदर तरीके से समझाया है। सीखने के लिए दिया गया उदाहरण कि जंगल में लगाई गई लकड़ियों का ढेर अगर लंबाई में छोटा पड़ जाय तो सड़ जाता है। आपकी अनुवादित कविताओं को पढ़ना अच्छा लगता है। शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी अच्छी कविता ! गहरे संकेतों मे कविता की रचना-प्रक्रिया को समझाया है सुंदरता से !आभार,मनोज जी !
ReplyDeleteचिंतन से उपजी ...विचार देती हुइ ..गहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ..
अगर व्यक्ति कम शब्दों में बड़ी बात कह दे तो वास्तव में वह जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी पकड लेता है. जंगल में लकड़ियों का ढेर व्यक्ति को हमेशा ज़मीन से जुड़े होने कि भी बात कह रही हैं.
ReplyDeleteइस रियाज में मनोज भाई द्वारा चयनित-अनूदित कविताओं की बड़ी भूमिका है.
ReplyDeleteमनोज भाई ,शुक्रिया :)
ReplyDeleteलकड़ी और लेखन में साम्यता.शब्दों के बेतरतीब ढेर लगाने से बेहतर है कम और अच्छा लिखा जाना.
ReplyDelete