इज़त सरजलिक की एक और कविता...
हाथ : इज़त सरजलिक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पांच लम्बे बरसों तक
एक राइफल का कुंदा थामे रहा यह
हाथ एक फ़ौजी का.
इसका काम था
मार डालना एक प्यारे कुत्ते को:
हाथ एक शिकारी का.
अपनी पूरी ज़िंदगी
यह बरसाता रहा मुक्के:
एक मुक्केबाज का हाथ.
अपनी पूरी ज़िंदगी
एक गिलास थामे रहा यह:
एक पियक्कड़ का हाथ.
और यह रहा एक खुशकिस्मत हाथ
पिछले बीस बरसों से
यह दुलारता रहा है तुम्हें.
यह रहा खुशकिस्मत हाथ!
(1968)
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फ़ौजी, शिकारी, मुक्केबाज़ और पियक्कड़ ... हैं तो ये चारों एक ही व्यक्ति के विविध रूप, पर इन सबके हाथ का गुणधर्म विध्वंसक, विस्फोटक और क्षयकारी होने के कारण अलग है पांचवें रूप से. एक स्नेहिल व्यक्ति का हाथ, और इसलिए सबसे अलग और विशिष्ट, मन को सुकून देने वाला भी. अच्छा लगा इस कविता से गुज़रना.
ReplyDeleteदुलारते हाथों का प्रताप!
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
manoj ji kasa huwa anuvad..... safal... atma upstith...sadhuvad swikar karen.
ReplyDeletesantosh patel
Editor: Bhojpuri Zindagi
मनोज जी
ReplyDeleteयथोचित
साहित्यिक अनुवाद का बेमिसाल उदहारण, कसा हुआ, आत्मा बरकरार
साधुवाद
संतोष पटेल
संपादक " भोजपुरी ज़िन्दगी"
हमारी कल्पना से बाहर यह साधारण सी बात कि बोस्निया हर्जेगोवीना के लोगों और वहाँ के एक कवि के लिए बीस बरस से दुलारते हाथों का क्या मायने है. मार्मिक...
ReplyDeleteवाह .क्या कविता है हाथ के माध्यम से व्यक्ति का पूरा वर्णन अद्भुत है.
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद.
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