Wednesday, April 4, 2012

ऊलाव एच. हाउगे : मत आओ मेरे पास पूरा सच लेकर

आज प्रस्तुत है नार्वे के कवि एवं अनुवादक  ऊलाव एच. हाउगे  (१८ अगस्त १९०८ - २३ मई १९९४) की एक कविता.   

 











मत आओ मेरे पास पूरा सच लेकर : ऊलाव एच. हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मत आओ मेरे पास पूरा सच लेकर.  
पूरा समुन्दर लेकर मत आओ जब प्यास लगे मुझे, 
जब रोशनी माँगू तो मत आ जाओ स्वर्ग लेकर;  
बल्कि एक झलक  लाओ, थोड़ी सी ओस, एक कतरा, 
जैसे पंछी सिर्फ कुछ बूँदें ले जाते हैं पानी से 
और नमक का एक कण ले जाती है हवा. 
                    :: :: :: 

8 comments:

  1. सुंदर, प्यारी सी कविता।

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  2. सराहनीय पोस्ट, आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें

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  3. ...क्यूंकि एक कतरा ही काफ़ी है!
    सुन्दर!

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  4. फक़त एक क़तरा ! तृप्त हुआ भाई .

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  5. सुकोमाल प्रेम कविता जिसमें अधूरेपन को सकारात्मक बताया गया है.जिंदगी में मुकम्मिल लगाने वाला सच भी अंततः आभासी साबित होता है.

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  6. बहुत सुंदर कविता ! ज़रूरत से ज्यादा होना भी एक मुसीबत है !

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