Monday, April 9, 2012

पैट श्नीडर : मामूली चीजों का धीरज

अमेरिकी कवि पैट श्नीडर  की एक कविता...   

 
मामूली चीजों का धीरज : पैट श्नीडर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यह एक तरह का प्यार है, है न? 
जिस तरह कप थामता है चाय को, 
जिस तरह कुर्सी खड़ी रहती है दृढ़ और अचल,  
जिस तरह फर्श स्वीकार करती है जूते के तल्लों 
या पंजों को. जिस तरह पैर के तलुवे जानते हैं 
कि कहाँ होना है उन्हें. 
मैं सोचता रहा हूँ मामूली चीजों के धीरज के बारे में, 
कि कैसे इंतज़ार करते हैं कपड़े 
आलमारियों में आदरपूर्वक 
और साबुनदानी में सूखता है साबुन चुपचाप, 
और तौलिए सोख लेते हैं गीलापन 
पीठ की त्वचा से. 
और सीढ़ियों की वह प्यारी आवृत्ति. 
और एक खिड़की से ज्यादा उदार क्या हो सकता है भला? 
                    :: :: ::

8 comments:

  1. मामूली चीज़ों में विशिष्ट उदारता और धीरज देख पाने वाली कवि की दृष्टि को प्रणाम!

    ReplyDelete
  2. मामूली वस्तुओं को प्रेम और धैर्य की प्रतीक बताते हुए कवि ने उनमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी है.

    ReplyDelete
  3. हाँ पैट साहब,ये प्यार ही है -क्योंकि और कोई भी व्यवहार नहीं है वहाँ ......आप का शुक्रिया बनाम मनोज भाई.

    ReplyDelete
  4. मामूली चीजों का धीरज गैरमामूली है, इस कविता की तरह असाधारण सा।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...