Saturday, April 28, 2012

अडोनिस : उसने कहा था


इस ब्लॉग पर आप सीरियाई कवि अडोनिस की कविताएँ पढ़ते रहे हैं. इस ब्लॉग की ५०० पोस्ट पूरी होने के मौके पर आज प्रस्तुत हैं उनकी कविताओं से कुछ कोट्स...

उसने कहा था : अडोनिस 

(अनुवाद एवं प्रस्तुति : मनोज पटेल)

मैं नहीं, यह पृथ्वी है गुमशुदा
जिस पर मैं रहता हूँ. 
               * * *

अगर मैं कोई बादल होता,
चरवाहों के ऊपर से गुजरता बसंत में 
और प्रेमियों के लिए होता एक तम्बू की तरह.
               * * * 

वह पहनता है युद्ध की वर्दी 
और दिखावा करता है विचारधारा का लबादा पहन. 
दरअसल वह एक सौदागार है
कपड़ों का नहीं, लोगों का.  
                 * * *           

कल मर गया वह फूल 
जिसने लालच दिया था हवा को 
अपनी खुशबू फैलाने का.
                 * * *

अब सूरज नहीं उगता.
वह कफ़न ओढ़ लेता है तिनके का 
और गायब हो जाता है.
                 * * *

नाउम्मीदी, मैं तुम्हें 
तुम्हारे असली नाम से पुकारता हूँ.
हम कभी अजनबी नहीं रहे, मगर 
मैं इन्कार करता हूँ तुम्हारे साथ चलने से.
               * * * 

हरी पत्तियों से गूंथ लो अपनी चोटियाँ, मेरे बच्चों,
अब भी कविताएँ हैं हमारे बीच.
हमारे पास समुन्दर है 
और अपने ख्वाब.
               * * *

एक ही जैसी होती है सूरज और मोमबत्ती की रोशनी 
दिल के अँधेरे में.
               * * *

क्या बदसूरती से मुक्त होकर 
दुनिया और खूबसूरत हो जाएगी?
               * * *

क्या मैं यह कहूं कि उसकी ज़िंदगी एक शब्द थी,
मगर सिर्फ उसकी मौत ही उसे कुछ मायने दे सकती थी.
                * * *  

क्या लेखन भी एक रेत घड़ी है?
                * * *

न्यूयार्क एक स्त्री है 
एक हाथ में एक फट्टी थामे हुए 
जिसे इतिहास लिबर्टी कहता है,
और दूसरे हाथ से गला घोंटते हुए पृथ्वी का.
               * * * 

मैनें कहा : "ब्रुकलिन ब्रिज!"
मगर वह तो अब व्हिटमैन और वाल स्ट्रीट को जोड़ता है,
अब वह पुल हो गया है हरी पत्तियों और हरे नोटों के बीच का.
               * * * 

कभी-कभी खेत में उग आती हैं कीलें,
खेत इतना चाहता है पानी को. 
               * * *

सर्दी का अकेलापन 
और गर्मी की क्षणभंगुरता 
जुड़ी है बसंत के पुल से.
               * * * 

खुशी उम्रदराज पैदा होती है 
और मरती है एक बच्चा होकर.
               * * *

जाते हुए 
मैं बंद कर जाता हूँ अपने पीछे 
पृथ्वी का दरवाज़ा.
               * * * 

मैं जा रहा हूँ 
अपने माथे पर निर्वासन का पसीना लिए हुए
और अपनी आँखों में सोती हुई 
एक गुमशुदा कविता के साथ.
               * * * 

कुछ कागज़ लाओ मेरे लिए,
थोड़ी रोशनाई.
... अभी दिल हैं छूने के लिए.
               * * *   

क्या यह कोई ख्वाब है?
क्या वापसी नाम का कोई सफ़र नहीं?
               * * * 

आवाज़ भाषा की सुबह है. 
               * * *

इंसान सतत मृत्यु की एक प्रक्रिया है.
               * * *

मिट्टी एक देंह है 
जो नृत्य करती है 
सिर्फ हवा के साथ. 
               * * * 

एक बार गाया था मैनें : थकता हुआ 
हर गुलाब उसका नाम है 
सफ़र करता हुआ हर गुलाब उसका नाम है. 
          क्या सड़क ख़त्म हो गई? क्या उसने अपना नाम बदल लिया? 
               * * *

कुदरत बूढ़ी नहीं होती.
               * * *

खून सोचता है, देंह लिखती है.
               * * *

धूल एक जंगली घोड़ा है जिसे साधना मुश्किल है.
उसके पैरों के निशान से ढँकी हुईं हैं सड़कें.
               * * * 

रेत को समझने के लिए 
तुम्हें कोई लहर होने की जरूरत नहीं.
               * * *

ऐ रोशनाई की रेल, उसके कागजों पर 
कोई स्टेशन नहीं है.
               * * * 

अपनी बाहें फैला लो.
मैं देखना चाहता हूँ 
उनके बीच 
कांपती हुई अपनी स्मृति. 
               * * * 

कहीं पैठ नहीं है हमारी खामोशी की 
हमारे प्यार की तरह, उस तक भी कोई रास्ता नहीं जाता.  
               * * *

हम घूमते थे अपनी बर्बादी के खंडहरों में, अपनी नादानियों के आईने में 
बेजान कागज़ के शब्दकोषों में  
और कोई निशान नहीं छोड़ते थे हमारे क़दम  
चलो फिर से चलें 
अपने बेहतर दिनों के बगीचे में 
               * * *

कोई पुल नहीं था 
मेरी देह और मेरे ख्वाब के बीच  
इस तरह मैं रहने लगा अपने ख़यालों में 
इस तरह दोस्त बन गए मैं और फ़रेब 
               * * *   

मौत को खूबसूरत बनाना गुनाह है.
               * * *

हम कौन सी जुबान में सूरज को बताएं 
कि उसका उगना एक जख्म है और उसका डूबना एक कब्र.
               * * * 

यह बुढ़ापा नहीं, बचपना है जो तुम्हारे चेहरे को झुर्रियों से भरे हुए है.
               * * *

हवा भी बनना चाहती है 
तितलियों से खींची जाने वाली 
एक गाड़ी.
              * * * 

सूरज जिद करके पहनता है कुहासे का कपड़ा 
मुझसे मिलता है जब वह.
              * * *

ओह, अब मेरी इन्द्रियों को पहले से भी ज्यादा जरूरी है 
पवित्र किताबों को कविता की नजर से पढ़ना.
               * * *

एक सितारा 
अन्तरिक्ष के मैदान में एक पत्थर भी तो है. 
             * * *

"क्या, किधर, कैसे?
बह चुकी हैं सारी हवाएं  
सारी डालियाँ झूम चुकीं उनके साथ,
पर तुम नहीं आई."
              * * *  

तुम्हें पढ़ता है आसमान 
जब मौत तुम्हें लिख देती है. 
              * * *

वर्तमान एक बूचड़खाना है 
और सभ्यता एक नाभिकीय नरक.
               * * * 

ज़िंदगी, मैं तुम्हारी, या तुमसे कोई शिकायत नहीं करना चाहता.
सिर्फ यह कहना चाहता हूँ : मैं अब भी तुमसे प्यार करता हूँ.
               * * * 

इंसान एक देह नहीं बल्कि एक संख्या है.
हर गुजरते दिन के साथ 
कुछ घटता जाता है उसमें. 
               * * *

रेत, मैं तुम्हें मुबारकबाद देता हूँ. 
सिर्फ तुम ही ढाल सकती हो 
पानी और मरीचिका को 
एक ही प्याले में. 
             :: :: :: 

7 comments:

  1. बहुत सुंदर ----भाव ऐश्वर्य से अमिर बनाने के लिए धन्यवाद.....मनोज जी....कैसे लिख लेते है आप इतना कुछ....!!

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  2. बहुत सुंदर और बहुमूल्य रत्नों से गूँथी है यह माला ! ब्लग की 500 वीं पोस्ट के लिए बधाई !

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  3. वाह, क्या बात है!

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  4. waah waah waah waah waah waah...Manoj..khoob jeeo aur khoob kaam karo..shubkaamnaayein..ittefaak se maine apne bolg pe aisa hi kuchh likha aur uske baad aapke bolg pe ye padha...Saadhuvaad hai aapko..yaatra nirantar rahe..shubkaamnaayein..

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  5. पढ़ते-पढ़ते शतकों का शतक बनाये...
    बधाई एवं शुभकामनाएं!

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  6. कुदरत,कविता और प्रेम के नष्ट होने की इस कविता में न्यूयोर्क पार चुभती टिपण्णी की गयी है.

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  7. कुदरत,कविता और प्रेम के नष्ट होने की इस कविता में न्यूयोर्क पर चुभती टिपण्णी की गयी है.

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