आज पढ़ते हैं येहूदा आमिखाई की एक कविता...
येरुशलम की आबो-हवा : येहूदा आमिखाई
(अनुवाद : मनोज पटेल)
येरुशलम के ऊपर की हवा भरी रहती है प्रार्थनाओं और स्वप्नों से
औद्योगिक शहरों की हवा की तरह
मुश्किल होता है सांस लेना.
समय-समय पर पहुंचती रहती है इतिहास की नई खेप
और मकान और मीनारें होते हैं उसकी गठरी बाँधने के सामान.
बाद में उन्हें फेंक दिया जाता है कचरे के ढेर में.
और कभी-कभी मोमबत्तियां आ जाती हैं लोगों की बजाय
खामोशी छा जाती है उस समय.
और कभी-कभी लोग आ जाते हैं मोमबत्तियों की बजाय,
शोर मचने लगता है तब.
और चमेली के पौधों से भरे बंद बगीचों में
विदेशी दूतावास,
अनचाही दुष्ट बहुओं की तरह,
पड़े रहते हैं अपने समय के इंतज़ार में.
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Manoj Patel, Akbarpur - Ambedkarnagar, (U.P.)
नव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
ReplyDeleteधनबाद में हाजिर हूँ --
...........कभी-कभी मोमबत्तियां आ जाती हैं लोगों की बजाय
ReplyDeleteखामोशी छा जाती है उस समय ........................
बहुत अच्छी कविता ! आभार मनोज जी !
बहुत सुंदर कविता...
ReplyDeleteekdam nayi soch, naya vishay.
ReplyDeleteyah hai *dekh* paanaa.
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