Tuesday, January 10, 2012

येहूदा आमिखाई : चाँद ही तो था मैं

येहूदा आमिखाई की एक और कविता...

 
चाँद ही तो था मैं : येहूदा आमिखाई 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

बहुत उदास है मेरा बच्चा. 
मैं उसे पढ़ाता हूँ : 
मुहब्बतों का भूगोल, 
और विदेशी भाषाएँ जो वह सुन नहीं पाता 
दूरी की वजह से. 

रात में, मेरा बच्चा 
मुझ तक हिलाता है अपना छोटा पलंग. मैं उसे पढ़ाता हूँ 
भूलने से भी ज्यादा, भूलने की भाषा. 
जब तक वह समझने लायक होगा मेरे कामों को, 
मैं मर चुका होऊंगा. 

क्या कर रहे हो तुम हमारे चैन से सोते बच्चे के साथ? 
तुम उसे ओढ़ा देती हो एक कम्बल, 
आसमान की तरह. बादलों की एक परत. 
काश कि चाँद हो पाया होता मैं. 

क्या कर रहे हो तुम अपनी उदास उँगलियों के साथ? 
तुम ढक देती हो उन्हें दस्ताने में 
और चली जाती हो.  
चाँद ही तो था मैं. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, Mobile : 09838599333 

1 comment:

  1. 'मैं उसे पढाता हूं, भूलने से भी ज़्यादा/ भूलने की भाषा...'

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