लैंग्स्टन ह्यूज की चार कविताएँ...
लैंग्स्टन ह्यूज की चार कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अश्वेत मजदूर
बहुत मेहनत करती हैं मधुमक्खियाँ.
उनसे छीन लिया जाता है उनकी मेहनत का फल.
हम भी हैं मधुमक्खियों की ही तरह --
मगर ऐसे ही नहीं चलेगा
हमेशा.
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जोड़
7x7+ प्रेम =
ऎसी संख्या
जो बहुत अधिक होगी
7x7- प्रेम
से.
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पार्क की बेंच
मेरी ज़िंदगी बीत रही है पार्क बेंच पर.
और तुम्हारी पार्क एवन्यू में.
बहुत फर्क है
हम दोनों के बीच.
मैं एक-एक पाई भीख माँगता हूँ भोजन के लिए --
और तुम्हारे यहाँ हैं खानसामा और नौकरानी.
मगर अब जाग रहा हूँ मैं!
कहो, क्या डर नहीं लग रहा तुम्हें
कि क्या पता, हो सकता है ऐसा
दो-एक सालों में
पहुँच जाऊं मैं
पार्क एवेन्यू में.
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जब आप मुड़ते हैं किसी मोड़ से
और टकरा जाते हैं खुद से ही
तो जान जाते हैं कि आप
मुड़ चुके हैं बाक़ी सारे मोड़ों से.
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Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, Phone : 09838599333
गूढ़ चिंतन और सहज अनुभूतियों से सृजित बेजोड़ कविताओं का सुन्दर अनुवाद!
ReplyDeleteचारों कवितायेँ अपने आप में बेहतरीन.....बहुत बढिया चयन एवं अनुवाद....!!
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteछोटी लेकिन नए बिम्बों की कविताएं। सुंदर और सहज कविताएं।
ReplyDeleteवाह वाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
सब एक से बढ़ कर एक..
शुक्रिया.
अच्छी कविताएं. 'अश्वेत मज़दूर', 'जोड़' और 'अंतिम मोड़' बेजोड हैं, अपने लघु आकार के बावजूद. कविताओं के तुम्हारे चयन के लिए हर बार तुम्हें बधाई देने को जी चाहता है, मनोज, और अनुवाद की सादगी के लिए भी.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मनोज जी इन्हें हम तक पहुंचाने का.एक गुज़ारिश है, इनकी 'अ ड्रीम डेफर्ड'हो सके तो यहाँ पढ़वाएं.अगर यहाँ पहले से ही है तो मैं खोजता हूँ.
ReplyDeletebahut badhiya..
ReplyDeleteबहुत अच्छी कवितायेँ ..........बहुत अच्छा अनुवाद ! बधाई मनोज जी !
ReplyDeletebahut badhiya ..antim mod to laajvaab hai
ReplyDeleteबेहतरीन ....अंतिम मोड तो लाजवाब है
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