सीरियाई कवि मुहम्मद अल-मगहत की एक कविता...
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अन्तरिक्ष यान में एक अरब यात्री : मुहम्मद अल-मगहत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वैज्ञानिकों और इंजीनियरों!
मुझे एक टिकट दे दो अन्तरिक्ष का
मेरे उदास वतन ने भेजा है मुझे
अपनी विधवाओं, अपने बच्चों और बुजुर्गों के नाम पर
आसमान का एक मुफ्त टिकट मांगने के लिए
क्योंकि पैसा नहीं सिर्फ आंसू हैं मेरे पास
क्या कहा, जगह नहीं है मेरे लिए?
मुझे यान के पीछे
छत पर ही बैठ जाने दो
मैं किसान हूँ, आदत है इस सबकी
किसी तारे को नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा मैं
छूऊँगा नहीं एक भी बादल
सिर्फ खुदा तक पहुंचता चाहता हूँ मैं
जल्द से जल्द
उनके हाथ में एक कोड़ा थमाने के वास्ते
कि वे जगाएं हमें बगावत के लिए!
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Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte
अन्याय के विरोध में खड़े होने का बड़ा काव्यात्मक आह्वान है...!
ReplyDeleteसुन्दर!
भाई, बहुत सशक्त कविता है. "छुऊँगा नहीं एक भी बादल/ सिर्फ़ खुदा तक पहुंचना चाहता हूं मैं/ जल्द से जल्द/ उनके हाथ में एक कोड़ा थमाने के लिए/ कि वे जगाएं हमें बगावत के लिए." तीखा व्यंग्य है ! खुदा चाहे तो ही बगावत करवा सकता है.
ReplyDeleteअदभुद....
ReplyDeleteकमाल की रचना...
शुक्रिया.
अद्भुत . पूरी कविता. लाजवाब .
ReplyDeleteपढने पर http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/09/blog-post_09.html पर कुछ दिन पहले लगाये निशा व्यास की पँक्तियाँ याद हो आईं...
ReplyDeleteतुम हमारे हाथ काट-काट कर फेंकते रहे
और वे भरी-पूरी फसल के रूप में
उग आये हैं
अब कई जोड़ी हाथ
तैयार हैं
जकड़ने के लिए
तुम्हारी गरदनें।
बहुत बढ़िया ,तरीका चाहे कुछ भी हो मगर उद्देश्य अच्छा ! इस जानदार कविता के लिए आभार मनोज जी !
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